9 मार्च 2010

२२- धुँए और धूल में आया : रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

धुँए और धूल में आया
गाँव को भूल मैं आया
तरल नयनों की पुतली में
फूल तीसी के तिरते हैं
फूले तोड़िए के खेत-
तरल सुधियों में घिरते हैं
मुझे बिछुड़े हुए तुमसे
यूँ ही बीत गए बरसों

गवाँया बहुत,कम पाया
लगा -जीना नहीं आया
खोया नगर के बीहड़ में
मैं मृगछौने -सा पागल
खोई है उम्र वासन्ती
हुए हैं पाँव भी घायल
बचपन की सहेली-सी
लगी है आज भी सरसों

तपे माथे को सहलाकर
मुझे सीवान यूँ बोले -
उदासी की ये भारी -
पाग क्यों पहने हुए आए ?
चने के फूलों से लकदक
खेत तुमको नहीं भाए ?
कोयल के साथ तुम गाओ
पास जो, बाँट दो हरसो
झूम लो तितलियों जैसे
भौंर-गुंजार -से बरसो

--
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

7 टिप्‍पणियां:

  1. तपे माथे को सहलाकर
    मुझे सीवान यूँ बोले -
    उदासी की ये भारी -
    पाग क्यों पहने हुए आए ?
    चने के फूलों से लकदक
    खेत तुमको नहीं भाए ?
    कोयल के साथ तुम गाओ
    पास जो, बाँट दो हरसो
    झूम लो तितलियों जैसे
    भौंर-गुंजार -से बरसो
    kitni sunder panktiya
    bahut sunder geet
    ghnyavad
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  2. तरल नयनों की पुतली में
    फूल तीसी के तिरते हैं
    फूले तोड़िए के खेत-
    तरल सुधियों में घिरते हैं
    मुझे बिछुड़े हुए तुमसे
    यूँ ही बीत गए बरसों



    सुंदर....

    आपको बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  3. धुँए और धूल में आया
    गाँव को भूल मैं आया
    तरल नयनों की पुतली में
    फूल तीसी के तिरते हैं
    फूले तोड़िए के खेत-
    तरल सुधियों में घिरते हैं
    मुझे बिछुड़े हुए तुमसे
    यूँ ही बीत गए बरसों
    badhaee ho Sriman, mai aapaki laghu kathaon ka to pahle se hi mureed raha hun ab apke geeton our kavitaaon ka bhee mureed ban gaya hun.abhvyakti ke is naye andaj ka mai bhee anugami banana chahta hun bas aapka asheesh chahiye.

    जवाब देंहटाएं
  4. धुएँ और धूल में आया,
    गाँव को भूल मैं आया!
    --
    खोया नगर के बीहड़ में
    मैं मृगछौने-सा पागल!
    --
    बचपन की सहेली-सी
    लगी है आज भी सरसों!
    --
    चने के फूलों से लकदक
    खेत तुमको नहीं भाए?
    --
    इनको पढ़कर मन गया गाँव,
    पाने पीपल की मधुर छाँव!
    जिसके नीचे हम खेले थे,
    जिसके नीचे सब मेले थे!

    जवाब देंहटाएं
  5. मुझको यह रचना रुची. गँवाया, गँवार, गँवई, गँवाना आदि में 'ग' पर चन्द्र बिन्दी लगाई जाती है. अपने 'व' पर लगाई है.

    जवाब देंहटाएं
  6. मुझको यह रचना रुची. गँवाया, गँवार, गँवई, गँवाना आदि में 'ग' पर चन्द्र बिन्दी लगाई जाती है. अपने 'व' पर लगाई है.


    कृपया अपनी टिप्पणी देख लीजिए । मैंने 'य' पर चन्द्र बिन्दी नहीं लगाई है ।आपने जोश में खुद ही त्रुटि कर दी है । 'गवाँना' शब्द ग्राम -गाँव से नहीं बना है ; अत: गँवार, गँवई के साथ इसे रखना ज़्यादा सही नहीं है । फिर भी -'गवाँना' और 'गँवाया' 'दोनों वर्तनी सही हैं । आप चाहें तो डॉ हरदेव बाहरी का हिन्दी शब्दकोश देख लीजिए ।फिर भी आपका धन्यवाद ।


    -रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु।


    धुँए और धूल में आया
    गाँव को भूल मैं आया
    तरल नयनों की पुतली में
    फूल तीसी के तिरते हैं
    फूले तोड़िए के खेत-
    तरल सुधियों में घिरते हैं
    मुझे बिछुड़े हुए तुमसे
    यूँ ही बीत गए बरसों

    गवाँया बहुत,कम पाया

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।