11 मार्च 2010
२४- फागुन आयो रे : निर्मल सिद्धू
दिल-दिल में
उल्लास बड़ा
उत्पात
मचायो रे,
फागुन आयो रे!
किरनों ने अब
धुंध को चीरा
मन्द-मन्द है
बहे समीरा,
बगिया में
भंवरा भी फिर से
घात लगायो रे!
फागुन आयो रे!
ऋतुओं की रानी
है फागुन
एक नहीं
बहुतेरे हैं गुन,
मिलजुल सारे
प्रेम की इक
अलख जगायो रे!
फागुन आयो रे!
दिवस बड़े और
रैना छोटी
चुहल करे
नयनों की गोटी,
सजन-सजनिया
होली में मिल
रंग जमायो रे!
फागुन आयो रे!
उलझा जग का
तानाबाना
कभी कोई
कभी कोई निशाना,
उजड़े लोगों में
दोबारा
आस जगायो रे!
फागुन आयो रे!
--
निर्मल सिद्धू
Labels:
कार्यशाला : ०७
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ऋतुओं की रानी
जवाब देंहटाएंहै फागुन
एक नहीं
बहुतेरे हैं गुन,
मिलजुल सारे
प्रेम की इक
अलख जगायो रे!
फागुन आयो रे!
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bhav bheeni rachana!
दिल-दिल में
जवाब देंहटाएंउल्लास बड़ा
उत्पात
मचायो रे,
फागुन आयो रे!
सुंदर रचना फ़ागुन आयो...रे....
ऋतुओं की रानी
जवाब देंहटाएंहै फागुन
एक नहीं
बहुतेरे हैं गुन,
मिलजुल सारे
प्रेम की इक
अलख जगायो रे!
फागुन आयो रे!
बहुत सुन्दर गीत, बहुत बहुत बधाई , धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
दिवस बड़े और
जवाब देंहटाएंरैना छोटी
चुहल करे
नयनों की गोटी,
सजन-सजनिया
होली में मिल
रंग जमायो रे!
फागुन आयो रे!
उलझा जग का
तानाबाना
कभी कोई
कभी कोई निशाना,
उजड़े लोगों में
दोबारा
आस जगायो रे!
फागुन आयो रे!
ek prtikshit v sahaj pravahvala navgeet.
badhaee ho
दिवस बड़े और
जवाब देंहटाएंरैना छोटी
चुहल करे
नयनों की गोटी,
सजन-सजनिया
होली में मिल
रंग जमायो रे!
फागुन आयो रे!
उलझा जग का
तानाबाना
कभी कोई
कभी कोई निशाना,
उजड़े लोगों में
दोबारा
आस जगायो रे!
फागुन आयो रे!
mujhe to dar hai yeh geet sunkar phagun phir kabhee jaee hi na
ati sundar rachana
मनभावन नवगीत!
जवाब देंहटाएं--
हर दिल में
उल्लास बहुत
उत्पात
मचायो रे,
फागुन आयो रे!
--
तुमने गायो,
हमने गायो,
सबने गायो रे!
--
तुमको भायो,
हमको भायो,
सबको भायो रे!
ऋतुओं की रानी
जवाब देंहटाएंहै फागुन
एक नहीं
बहुतेरे हैं गुन,
मिलजुल सारे
प्रेम की इक
अलख जगायो रे!
फागुन आयो रे!
chhoti chhoti panktiyan aur bhav pravanta ne man moh liya
किरनों ने अब
जवाब देंहटाएंधुंध को चीरा
मन्द-मन्द है
बहे समीरा,
बगिया में
भंवरा भी फिर से
घात लगायो रे!
फागुन आयो रे!
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sunder hai.
दिवस बड़े और
जवाब देंहटाएंरैना छोटी
चुहल करे
नयनों की गोटी,
सजन-सजनिया
होली में मिल
रंग जमायो रे!
फागुन आयो रे!
उलझा जग का
तानाबाना
कभी कोई
कभी कोई निशाना,
उजड़े लोगों में
दोबारा
आस जगायो रे!
फागुन आयो रे!
--
aisa ek matra geet jiske harek shabd me madhumas ke sath jiavan ka ullas piroya hai
hardik badhaee sidhhu bhaee
प्रेम की अलख जगाता,विश्वास की आस जगाता फागुन की गुहार लगाता-अच्छा लगा यह नवगीत ।
जवाब देंहटाएंबधाई और धन्यवाद ।
शशि पाधा
नवगीत की भाषा में वह टटकापन है जो चाहिए. भदेसी स्पर्श जितना अधिक होगा नवगीत उतना अधिक प्रभावी होता है.
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