14 मार्च 2010

२७- अब बसन्त आया है : डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"


उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!

कुहासे की चादर,
धरा से छँट गई।
फैली हुई धवल रुई,
गगन से हट गई।
उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!

सूर्य की
रश्मियों से,
दिवस प्रकाशित हैं।
वासन्ती सुमनों से ,
तन-मन सुवासित हैं।
उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!

होली का उल्लास है,
आँगन-चौराहों पर।
चहल-पहल नाचती है,
पगदण्डी-राहों पर।
उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!

गुनगुनी धूप ने,
मोर्चे सम्भाले हैं।
पर्वत भी छोड़ रहे,
बर्फ के दुशाले हैं।
उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!
--
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
खटीमा, ऊधमसिंहनगर (उत्तराखंड)

7 टिप्‍पणियां:

  1. उपवन मुस्काया है!
    अब बसन्त आया है!


    उपवन यूँ हीं मुस्काता रहे
    यूँ हीं वसंत आता रहे ।

    बहुत हीं सुन्दर रचना । आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. गुनगुनी धूप ने,
    मोर्चे सम्भाले हैं।
    पर्वत भी छोड़ रहे,
    बर्फ के दुशाले हैं।
    उपवन मुस्काया है!
    अब बसन्त आया है!

    बसंत का सुन्दर चित्रण, बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद,
    विमल कुमार हेडा

    जवाब देंहटाएं
  3. उपवन मुस्काया है!
    अब बसन्त आया है!


    कुहासे की चादर,
    धरा से छँट गई।
    फैली हुई धवल रुई,
    गगन से हट गई।
    उपवन मुस्काया है!
    अब बसन्त आया है!


    सूर्य की
    रश्मियों से,
    दिवस प्रकाशित हैं।
    वासन्ती सुमनों से ,
    तन-मन सुवासित हैं।
    उपवन मुस्काया है!
    अब बसन्त आया है!

    jate hue bahar kee phurar itnini madak hogi iska to andaja hi nahi tha "Mayankji" lekin apne ahsas kara hi diya badhaaee ho.

    जवाब देंहटाएं
  4. कुहासे की चादर,
    धरा से छँट गई।
    फैली हुई धवल रुई,
    गगन से हट गई।
    उपवन मुस्काया है!
    अब बसन्त आया है!


    ...



    ji han...बसन्त आया है

    bahut sundar....abhar

    जवाब देंहटाएं
  5. नवगीत के हर पद ने
    चित्र नया दिखाया है!
    उपवन के साथ-साथ
    मन भी मुस्काया है!
    मन को जो भाया है,
    सचमुच वसंत आया है!
    --
    बहुत मनभावन नवगीत!

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  6. वर्णनात्मकता कुछ अधिक प्रतीत हुई. आनुभूतिक सघनता की आप जैसे श्रेष्ठ रचनाकार से अपेक्षा होती है. रचना रुची.

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  7. वसन्त का सुन्दर वर्णन करती हुई एक मनभावन रचना है आपकी । धन्यवाद ।

    शशि पाधा

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