गंध के हस्ताक्षर
भेजता ऋतुराज
किसलय-पत्र पर
इंद्रधनुषी रंग वाले
गंध के हस्ताक्षर!
झूमते हैं खेत
वन-उपवन
हवा की ताल पर
थिरकते
बंसवारियों के अधर पर
फिर वेणु के स्वर
विवश होकर
पंचशर की छुअन से
लग रहे उन्मत्त
सारी सृष्टि के ही चराचर!
आज नख-शिख
फिर प्रकृति के
अंग मदिराने लगे,
और निष्ठुर
पत्थरों तक
सुमन मुस्काने लगे
पिघलता है पुनः
कण-कण का हृदय
हर कहीं पर अब चतुर्दिक
फागुनी मनुहार पर!
--
शिवाकांत मिश्र विद्रोही
kya baat hai.
जवाब देंहटाएंbahut achchhe.
बहुत सुन्दर रचना शिवाकांत जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
विमल कुमार हेडा
झूमते हैं खेत
जवाब देंहटाएंवन-उपवन
हवा की ताल पर
थिरकते
बंसवारियों के अधर पर
फिर वेणु के स्वर
आज नख-शिख
फिर प्रकृति के
अंग मदिराने लगे,
और निष्ठुर
पत्थरों तक
सुमन मुस्काने लगे
पिघलता है पुनः
कण-कण का हृदय
हर कहीं पर अब चतुर्दिक
फागुनी मनुहार पर!
naye pratikon v chhando me abadhh ek our anuthhi rachna, badhaee bhaee Shivkantji.
aadarniya smt ajit gupt ji,
जवाब देंहटाएंपिघलता है पुनः
कण-कण का हृदय
हर कहीं पर अब चतुर्दिक
फागुनी मनुहार पर! bahut hi sundar bahut hi badhiya geet.badhai.
poonam
इस नवगीत में
जवाब देंहटाएंबिंबो का अभिनव प्रयोग किया गया है!
आज नख-शिख
जवाब देंहटाएंफिर प्रकृति के
अंग मदिराने लगे,
और निष्ठुर
पत्थरों तक
सुमन मुस्काने लगे
पिघलता है पुनः
कण-कण का हृदय
हर कहीं पर अब चतुर्दिक
फागुनी मनुहार पर!
वाह! वाह! यही चाहिए. छन्द, भाषा, भाव, प्रतीक, बिम्ब, अनुभूति, नयापन तो है... ठेठ देहाती स्पर्श और होता तो सोने में सुहागा होता.
अति सुन्दर बिम्ब,माधुर्य से ओत-प्रोत भाषा और देशज शब्दों से सुसज्जित एक उत्कृष्ट नवगीत है आपका । धन्यवाद तथा बधाई ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा