7 अप्रैल 2010

कार्यशाला : ०८ : आतंक का साया

आतंक का साया
कार्यशाला : ०७ की अपार सफलता के लिए इसमें प्रतिभाग करनेवाले सभी नवगीतकार विशेष बधाई के पात्र हैं।
नवगीत की पाठशाला में आयोज्य आठवीं कार्यशाला के लिए इस गंभीर विषय की घोषणा करते हुए मैं बहुत आशान्वित हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सभी नवगीतकार पूर्व कार्यशालाओं की ही भाँति इसमें भी अपने संपूर्ण उत्साह के साथ प्रतिभाग करते हुए अपने श्रेष्ठ नवगीत का सर्जन करेंगे और नकारात्मक सोच को उजागर करनेवाले इस विषय को अपने सकारात्मक सोच से विस्थापित कर देंगे।

प्रतीक्षा का समय समाप्त हो चुका है। इस कार्यशाला में प्रतिभाग करने के लिए सभी नए और प्रतिष्ठित नवगीतकार अपनी रचनाओं के साथ सादर आमंत्रित हैं। मेरा विनम्र अनुरोध है कि इस विषय पर नवगीत रचते समय सभी प्रतिभागी निम्नांकित बिंदुओं को अवश्य ध्यान में रखेंगे, ताकि गुणवत्तापूर्ण नवगीतों का विकास हो सके --

०१
- पहले मात्र एक ही नवगीत का प्रेषण करें। मेल करते समय विषय को अवश्य भरें। जैसे - यदि आपके नवगीत का शीर्षक "कैसे मन मुस्काए?" है, तो विषय के सम्मुख बने आयत (बॉक्स) में इस प्रकार भरें -
कार्यशाला - ०८ के लिए नवगीत : कैसे मन मुस्काए?
०२- नवगीत प्रेषित करने की अंतिम तिथि २०.०४.२०१० है।
०३- दूसरा नवगीत अनुमति लेने के बाद ही प्रेषित करें।
०४- नवगीत के पद (अंतरे) दो से अधिक नहीं होने चाहिए। तीसरा पद अति आवश्यक होने पर ही रचा जाए। चौथा पद स्वीकार नहीं किया जाएगा।
०५- नवगीत को मात्र "नवगीत की पाठशाला" के ई-मेल पते पर ही भेजा जाए। इससे आपके नवगीत के खो जाने का भय नहीं रहेगा। "नवगीत की पाठशाला" का ई-मेल पता निम्नांकित है :
navgeetkipathshala@gmail.com
०६- शब्द समूह "आतंक का साया" का नवगीत में प्रयोग आवश्यक नहीं है। आतंक शब्द का प्रयोग किए बिना भी एक अच्छा नवगीत रचा जा सकता है।
०७- जब किसी देश, किसी शहर, किसी परिवार या किसी मन पर आतंक का साया होता है, तो वहाँ बसनेवालों की क्या मन:स्थिति होती है, किस तरह की परिस्थितियाँ वहाँ जन्म ले लेती हैं, मन में किस तरह के विचार व भावनाएँ पनपती हैं, इन सब बातों का चित्रण आप अपने नवगीत में कर सकते हैं। यह साया कभी छा न पाए और इससे कैसे निपटा जाए, इस प्रकार के सुझावों का समावेश भी नवगीत में किया जा सकता है। आतंक के साए में पनपनेवाले किसी भी पहलू पर विचार करने के लिए आप स्वतंत्र हैं।
०८- नवगीत रचकर तुरंत प्रेषण करने के स्थान पर यह अधिक अच्छा रहेगा कि उसे नवगीत की मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए कई बार जाँच-परखने के पश्चात ही प्रकाशन हेतु प्रेषित करें।
०९- गेयता और लय का निर्वाह करनेवाले मात्राओं से संतुलित नवीनतम् छंदों के विकास का प्रयत्न करें।
१०- नए बिंबों की खोजकर उन्हें आपने नवगीत में समाविष्ट करें। प्रचलित बिंबों, प्रतीकों व मिथकों का प्रयोग करते समय उन्हें नए रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करें, ताकि आपका नवगीत "नवगीत" ही लगे, मात्र गीत बनकर ही न रह जाए।
१२- नए रचनाकारों को नवगीत की पाठशाला के दाहिने साइडबार में सुझाए गए आलेखों व उन पर आई टिप्पणियों का अध्ययन करने का भी सुझाव दिया जा रहा है, ताकि उनके नवगीत "नवगीत" के ही रूप में विकसकर पाठकों के सामने आएँ।
१३- प्रकाशन हेतु प्राप्त जिन नवगीतों में कुछ कमियाँ होंगीं, उन्हें सुधारने के लिए प्रकाशन से पूर्व ही सुझाव दिए जाएँगे। नवगीतों को सुधारने के लिए विचार-विमर्श एक समूह के माध्यम से किया जाएगा। आवश्यकता पड़ने पर समूह की सदस्यता लेने के लिए आमंत्रण भेज दिया जाएगा।
१४- यह भी अवश्य ध्यान में रखें कि आंचलिकता के समावेश, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सकारात्मक सोच की उपेक्षा आपके नवगीत को निर्बल बना सकती है।

नई कार्यशाला की सफलता के लिए आप सबको नवीन ऊर्जामय शुभकामनाएँ --
--
पूर्णिमा वर्मन

8 टिप्‍पणियां:

  1. इस बार का विषय बहुत सामयिक है!
    --
    सचमुच,
    हम तो हर समय
    एक आतंक के साए तले ही
    जीवन जी रहे हैं!
    --
    इस ओर
    हम सबका ध्यान
    आकर्षित करके आपने
    बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया है!
    --
    कार्यशाला की सफलता के लिए
    मेरी ओर से भी सबको
    बधाई और शुभकामनाएँ!

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  2. कार्यशाला 8 के लिए एक सम सामायिक विषय चुना, बहुत बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनाएं
    विमल कुमार हेडा

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  3. समसामयिक विषय ...अच्छा चयन...प्रयास करेंगे...आभार

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  4. सचमुच एक सही विषय का चुनाव हुया है |
    बधाई |

    अवनीश तिवारी

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  5. सुन्दर विषय !!!

    प्रयास करेंगे । आभार

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  6. एक सही व समसामयिक विषय का चुनाव हुया है |शुभकामनाएं

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  7. रचना प्रायः स्वेच्छा से ही आती है विषय चुन कर सहज और श्रेष्ठ रचना की संभावना कम हो जाती है,इसके बावजूद चूँकि आतंक का साया जिस तरह संवेदनाओं के आँगन में पसरा हुआ है यह विषय आग में घी का काम करेगा और स्वाभाविक रचनाएँ भी नवगीत के रूप में निश्चित ही प्रस्फुटित होंगीं,इसी आशा और विश्वास के साथ आप को हार्दिक बधाई.

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