29 अप्रैल 2010

०१ : अब तो जागिए : हरिशंकर सक्सेना

आ रहा है -
धुंध का सैलाब।
अब तो जागिए

आज घर की लाज चहुँदिश
कीचकों से त्रस्त है।
रहनुमाई राग-रंग की
वीथियों में मस्त है

हर सुरक्षा
लग रही है ख्वाब
अब तो जागिए

हर कदम पर खौफ़
पैराशूट से उतरा यहाँ
आस्तीनों में छुपे
गद्दार से ख़तरा यहाँ

दाँव पर
लगती वतन की आब
अब तो जागिए

मुस्कुराती गंध
नफ़रत की हवा में खो गई
आस्था भी गोधरा-सी
रक्तरंजित हो गई

रैलियों में
बँट रहा तेज़ाब
अब तो जागिए
-- हरिशंकर सक्सेना

12 टिप्‍पणियां:

  1. रैलियों में
    बँट रहा तेज़ाब।
    अब तो जागिए ...........

    अब नहीं जागेंगे तो कब जागेंगे
    बेहतरीन

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  2. क्या बात है, क्या नवगीत है
    क्या प्रवाह, क्या लय
    क्या गीत है

    बधाई हो

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  3. मुस्कुराती गंध
    नफ़रत की हवा में खो गई।
    आस्था भी गोधरा-सी
    रक्तरंजित हो गई।

    रैलियों में
    बँट रहा तेज़ाब।
    अब तो जागिए
    सुन्दर नवगीत बधाई!
    ...........

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  4. उत्तम द्विवेदी30 अप्रैल 2010 को 11:59 am बजे

    आज घर की लाज चहुँदिश
    कीचकों से त्रस्त है।
    रहनुमाई राग-रंग की
    वीथियों में मस्त है।

    आतंक का यह रूप चिंतनीय है. क्योंकि -
    और तो औरों से आया है
    ए दर्द तो अपनों नें ढाया है.
    बधाई!

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  5. रैलियों में /बँट रहा तेज़ाब/अब तो जागिए ..भाई हरिशंकर सक्सेना जी की ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं ।

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  6. बहुत सहजता से लिखा है ये नवगीत ....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. सोये को तो जगाना पड़ता है.
    पर सेने का बहाना करने वालों को कैसे उठाईयेगा?

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  8. आ रहा है -
    धुंध का सैलाब।
    अब तो जागिए ...........
    -----------
    रैलियों में
    बँट रहा तेज़ाब।
    अब तो जागिए ...........
    सुन्दर गीत के लिए बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
    विमल कुमार हेडा

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  9. प्रवाह और लय के साथ-साथ आतंक से उत्पन्न शोचनीय अवस्था का सजीव चित्रण करती हुई एक बहुत ही प्रभावी रचना के लिये धन्यावाद ।
    शशि पाधा

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  10. लिख दिया है
    गीत मनहर है -
    आपने यह मानिये...

    गीत की लय बिम्ब भाषा
    लगी है चोखी मुझे.
    तनिक टटकापन सुहागा
    सोने में होता सलिल.

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  11. आ रहा है धुंध का सैलाब!
    हर सुरक्षा लग रही है ख्वाब!
    दाँव पर लगती वतन की आब!
    रैलियों में बँट रहा तेज़ाब!
    --
    ऐसी विषम परिस्थितियों में जागरण का आह्वान करते
    और अपनी हर पंक्ति में एक अभिनव बिंब
    या उसका नव्य प्रस्तुतीकरण संजोए
    एक अति शक्तिशाली नवगीत से कार्यशाला का प्रारंभ
    एक सुखद आशा का संचार कर रहा है!

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