30 अप्रैल 2010

०२ : सपने शांति के पाले : विमलकुमार हेडा

सपने शांति के पाले

घाव गहरे हैं,
बम विस्फोटों के छाले।
फिर भी हमने,
सपने शांति के पाले।

चाहे जाए बाज़ार या शहर,
या करे कोई कहीं भी सफ़र,
हर पल रहती चौकन्नी नज़र,
कहीं से न हो हमले की ख़बर,
ढा न जाए कोई सिरफिरा क़हर।

दहशतगर्दी के इस माहौल में -
कैसे कोई
शब्दों को गीतों में ढाले।

बात हमले की आम रोज़ हो गई,
आतंकी गठरी सर पे बोझ हो गई,
जनता में नई ख़बर खोज हो गई,
डरने की बात जमींदोज हो गई,
निर्भय रहना सबकी सोच हो गई।

हिन्द की जनता सब कुछ पी जाती -
चाहे बरसा लो
तुम ज़हर-भरे प्याले।

तीज-त्योहार जहाँ के रीति-रिवाज,
ऐसे में खु़शियों की आती आवाज़,
सीमा पर मुस्तैद सेना का जाँबाज,
जिसके बल पर है कल और आज,
जनता को क्यों न हो उस पर नाज़।

अपनी जान की परवाह छोड़ -
वो रहते हैं
औरों के रखवाले।
--
विमल कुमार हेडा
रावतभाटा, चित्तौड़गढ़ , राजस्थान (भारत)

13 टिप्‍पणियां:

  1. kya sunder likha hai

    बात हमले की आम रोज़ हो गई,
    आतंकी गठरी सर पे बोझ हो गई,
    जनता में नई ख़बर खोज हो गई,
    डरने की बात जमींदोज हो गई,
    निर्भय रहना सबकी सोच हो गई
    bahut sahi
    badhai
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तम द्विवेदी30 अप्रैल 2010 को 7:33 pm बजे

    दहशतगर्दी के इस माहौल में -
    कैसे कोई
    शब्दों को गीतों में ढाले।

    पर आप ने तो गजब ढाला जी...सायद इस लिए कि -

    हिन्द की जनता सब कुछ पी जाती -
    चाहे बरसा लो
    तुम ज़हर-भरे प्याले।

    बधाई !

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  3. कैसे कोई
    शब्दों को गीतों में ढाले...
    मुश्किल तो बहुत है मगर करना यही है ...

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  4. विस्फोटों का आतंक ...अच्छा चित्र खींचा है ....सटीक नवगीत

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  5. aatank ko geet ka vishay banana shayad kalpana se pare tha par aapne to vakai bahut achchaa likha hai
    respected team
    devnagari me likhna chahte hai par kaise likheN pata nahi ya to blog jaisa system ho ya dusra tareeka aap bataye

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  6. हेडा जी!
    आपका नवगीत बहुत ही सुन्दर है!
    हमें भी आपसे कुछ लिखने की प्रेरणा मिलती है!

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  7. मेरा भी गीत कार्यशाला में शामिल हुआ इसके लिए नवगीत की पाठशाला का हार्दिक आभार एवं धन्यवाद
    साथ ही रचनाजी, उत्तम द्विवेदीजी, वाणीजी, संगीताजी, शारदाजी, डाक्टर साहब रुप्चंदार्जी आप सभी का बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद,
    म,ैं डाक्टर साहब से यही कहना चाहूँगा की मरी प्रेरणा तो आप सभी पाठकगण हैंै क्योकिं आपने गीत को पढ़ा एवं पसंद किया.
    धन्यवाद
    विमल कुमार हेडा

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  8. पहले वाली टिप्पणी में मात्रात्मक त्रुटी रहगई थी उसको सुधारकर इस प्रकार पढ़े
    म,ैं डाक्टर साहब से यही कहना चाहूँगा की मेरी प्रेरणा तो आप सभी पाठकगण हैंै क्योकिं आपने गीत को पढ़ा एवं पसंद किया.
    धन्यवाद
    विमल कुमार हेडा

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  9. "निर्भय रहना सबकी सोच हो गई"
    कितनी गहरी बात कही है आपने । एक अच्छे नवगीत के लिये बधाई ।
    शशि पाधा

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  10. कोशिश करी विमल जी अच्छी,
    लय को साधें और जरा.

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  11. पिछली कार्यशाला में जो पढ़ा था,
    वह विमल जी का गीत था
    और इस गीत को पढ़कर लगा कि उनका गीत-लेखन
    अब नवगीत का रूप धरने लगा है!
    --
    इस गीत में सकारात्मकता को उभारने का उनका प्रयास स्तुत्य है!
    --
    कहने का तात्पर्य यही है कि काफी सुधार आ गया है!
    --
    अशक्त होती लयात्मकता को
    सशक्त करने का प्रयास तो उन्हें करना ही पड़ेगा
    और नए बिंबों के अन्वेषण के लिए
    अपनी दृश्य शक्ति को भी कुछ और सजग करना पड़ेगा!
    --
    आशा है कि अगली कार्यशाला में उनका गीत
    एक सशक्त नवगीत के रूप में सबके सामने आएगा!

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  12. विमल कुमार हेडा़13 मई 2010 को 8:29 am बजे

    शशि पाधा जी, दिव्य नर्मदा जी, एवं रविन्द्रकुमार रवि जी का बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद,
    आपके सुझाव पसन्द आये।

    विमल कुमार हेडा़

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