कैसे मन मुस्काए?
रोटी समझ चाँद को
बच्चा मन ही मन ललचाए।
आशा भरकर वो यह देखे -
माँ कब रोटी लाए।
दशा देखकर उस बच्चे की
कैसे मन मुस्काए?
घर के बाहर
चलना दूभर,
साँस सभी की
नीचे-ऊपर,
काँप रहा उसका दिल थर-थर,
मन बेहद घबराए।
ऐसे आतंकी साये में
कैसे मन मुस्काए?
हुआ धमाका
बम का जब-जब,
बढ़ी वेदना
मन में तब-तब,
लहूलुहान हुए लोगों का
खून छितरता जाए।
इन दृश्यों को देख भला फिर
कैसे मन मुस्काए ?
--
संगीता स्वरुप
बहुत सुंदर है ।
जवाब देंहटाएंइस रचना के व्यापक प्रचार की आवश्यकता है । वैसे मै संचालन मे आपका सन्दर्भ देकर उद्धृत करूँगा ।
जवाब देंहटाएंकविता पूरे देश की आवाज है ।
इस रचना के व्यापक प्रचार की आवश्यकता है । वैसे मै संचालन मे आपका सन्दर्भ देकर उद्धृत करूँगा ।
जवाब देंहटाएंकविता पूरे देश की आवाज है ।
इस रचना के व्यापक प्रचार की आवश्यकता है । वैसे मै संचालन मे आपका सन्दर्भ देकर उद्धृत करूँगा ।
जवाब देंहटाएंकविता पूरे देश की आवाज है ।
ह! शब्दों का कमाल! आतंक का चित्र खींच दिया।
जवाब देंहटाएंघर के बाहर
चलना दूभर,
साँस सभी की
नीचे-ऊपर,
काँप रहा उसका दिल थर-थर,
मन बेहद घबराए।
ऐसे आतंकी साये में
कैसे मन मुस्काए?
prashansneey rachna jiske shabd vyanjana bhi behtar hai. badhayi sangeeta swarup ji ko.
जवाब देंहटाएंघर के बाहर
जवाब देंहटाएंचलना दूभर,
साँस सभी की
नीचे-ऊपर,
काँप रहा उसका दिल थर-थर,
मन बेहद घबराए। sab bayan kar diya aapne...bahut khoob
mann stabdh, aankhen stabdh.....kahan hai koi muskaan
जवाब देंहटाएंaah kese man muskaye....kamal likha hai..
जवाब देंहटाएंmukhda aur dusara para dono hi dhyan khinchate hai badhai achchhi rachna ke liye
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का आभार
जवाब देंहटाएंaaj ka sach he ye
जवाब देंहटाएंbahtrin
bahut badhai
shekhar kumawat
घर के बाहर
जवाब देंहटाएंचलना दूभर,
साँस सभी की
नीचे-ऊपर,
काँप रहा उसका दिल थर-थर,
मन बेहद घबराए।
ऐसे आतंकी साये में
कैसे मन मुस्काए?
क्या बात है... बधाई हो!
अति सुन्दर रचना संगीता जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
विमल कुमार हेडा
लहूलुहान हुए लोगों का
जवाब देंहटाएंखून छितरता जाए।
इन दृश्यों को देख भला फिर
कैसे मन मुस्काए ?
ऐसे आतंकी साये में
कैसे मन मुस्काए?
True.बहुत सुंदर है
bahut sunder rachna Mumma.....yatharthwaadi lekhan k liye badhayi............
जवाब देंहटाएं:(:(
uff ! kai saari cheezein aankhon ke aage ghoom gayin aapki kavita padhke...badi himmat se ye comment likha hai....:(
रोटी समझ चाँद को
जवाब देंहटाएंबच्चा मन ही मन ललचाए।
आशा भरकर वो यह देखे -
माँ कब रोटी लाए।
दशा देखकर उस बच्चे की
कैसे मन मुस्काए?
बहुत ही मार्मिक और सारगर्भित नवगीत है!
बहुत-बहुत बधाई!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइसे 08.05.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
संगीता जी
जवाब देंहटाएंशब्द-चित्र यह
अनकहनी भी
मौन रहा कह.
पाठक शब्दों संग भावों में
बिन प्रयास बह पाए.
ऐसे मन छूते गीतों से
कौन कभी बच पाए?
संगीता जी, ठीक ही कह रही हैं आप । आतंक और भूख से व्याकुल इस जगति में कोई भी मन कैसे मुस्का सकता है । धन्यवाद आपका एक अच्छी रचना के लिये ।
जवाब देंहटाएंशशि पाधा