आतंकित हो मानवता की कोयल भूली कूक,
अंधा धर्म लिए फिरता है हाथों में बंदूक।
नफ़रत के प्यालों में,
जन्नत के सपनों की मदिरा देकर;
दोपाए मूरख पशुओं से,
मासूमों का कत्ल कराकर;
धर्म बेचने वाले सारे रहे ख़ुदी पर थूक।
रोटी छुपी दाल में जाकर,
चावल दहशत का मारा है;
सब्जी काँप रही है थर-थर,
नमक ही कथित हत्यारा है;
इसके पैकेट में आया था लुक-छिपकर बारूद।
इक दिन आयेगा वह पल,
जब अंधा धर्म आँख पाएगा;
देखेगा मासूमों का खूँ,
तो रोकर वह मर जाएगा;
देगी मिटा धर्मगुरुओं को फिर उनकी ही चूक।
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धर्मेंद्रकुमार सिंह ’सज्जन’
मुंसयारी, पिथौरागढ़, उत्तराखंड (भारत)
इक दिन आयेगा वह पल,
जवाब देंहटाएंजब अंधा धर्म आँख पाएगा;
देखेगा मासूमों का खूँ,
तो रोकर वह मर जाएगा;
देगी मिटा धर्मगुरुओं को फिर उनकी ही चूक।
काश!... ओ पल जल्दी आ जाता. ए पंक्तियाँ भी खूब हैं -
रोटी छुपी दाल में जाकर,
चावल दहशत का मारा है;
सब्जी काँप रही है थर-थर,
नमक ही कथित हत्यारा है;
इसके पैकेट में आया था लुक-छिपकर बारूद।
बहुत खूब! सज्जन साहब,
जवाब देंहटाएंनफ़रत के प्यालों में,
जन्नत के सपनों की मदिरा देकर;
दोपाए मूरख पशुओं से,
मासूमों का कत्ल कराकर;
धर्म बेचने वाले सारे रहे ख़ुदी पर थूक।...
...पैकेट में आया था लुक-छिपकर बारूद।
बहुत सही वर्णन किया है.
बढ़िया नवगीत!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बिम्बों का प्रयोग किया है!
इक दिन आयेगा वह पलए
जवाब देंहटाएंजब अंधा धर्म आँख पाएगाय
देखेगा मासूमों का खूँए
तो रोकर वह मर जाएगाय
देगी मिटा धर्मगुरुओं को फिर उनकी ही चूक।
और इसी आशा के साथ सभी जी रहें है। बहुत सुन्दर नवगीत, धर्मेन्द्र जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
बहुत बढ़िया नवगीत.....
जवाब देंहटाएंछंदहीनता की कारा के पहरेदार उलूक.
जवाब देंहटाएंनवगीतों ने साध निशाना मारा दाँव अचूक.
पिरो दिये गीतों में.
सज्जन ने भावों के शब्द-चित्र रच.
गीत रसिक कोई भी
बिम्बों के प्रभाव से नहीं सका बच.
परंपरा नव बना सकेगा, वह जिसमें हो हूक.
एक विचारोत्तेजक नवगीत के लिये धन्यवाद । प्रत्येक शब्द-बिम्ब आतंक का चित्रण करते हुए एक दृश्य प्रस्तुत करते हैं । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशशि पाधा