आँगन में उतरे जो साए,
विस्फोटों से दिल दहलाए।
तड़-तड़ करके ऐसे चीखे,
घरवालों को मौत सुलाए।
पाँव बड़े
आतंक के देखे,
रह गए सारे
हक्के-बक्के।
ख़ून-ख़राबा, गोला-बारी
गलियाँ सूनी मरघट चहके।
पौरुषता को कभी न भाये।
धर्म-जुर्म का
गहरा नाता,
सहमी बहना
सहमा भ्राता।
आचार संहिता दम तोड़े तो
दुर्बल कोई न्याय न पाता,
सबको दहशत से धमकाए।
अजगर भय का
जग को लीले,
कृष्ण ही आकर
इसको कीलें।
एक नहीं कई शिव चाहिए
जो उग्रवाद के ज़हर को पीलें,
रक्त विषैला कहाँ से लाए?
निर्मल सिद्धू
jhakjhor diya aapki kavita ne bahut khoob...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल गलत कह रहे हैं आप साथ ही आपको बहुत बड़ा भ्रम भी है..... धर्म का जुर्म से कोई नाता नहीं है...... और एक कवि को तो यह सोच बदल देनी चाहिए या फिर कविता लिखनी छोड़ देनी चाहिए। नवगीत लिखें तो मात्राओं और लय का भी ध्यान रखें........ ताज्जुब है कि इसे भी कुछ लोग अच्छा नवगीत कह रहे हैं.......
जवाब देंहटाएंआचार संहिता दम तोड़े तो
जवाब देंहटाएंदुर्बल कोई न्याय न पाता,
सबको दहशत से धमकाए।
सुन्दर पंक्तियाँ निर्मल जी बधाई , धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
एक नहीं कई शिव चाहिए
जवाब देंहटाएंजो उग्रवाद के ज़हर को पीलें,
रक्त विषैला कहाँ से लाए?
काश एक शिव भी मिल जाएँ....बढ़िया गीत
ठोकर खा, गिर फिर उठ जाये.
जवाब देंहटाएंजैसे कोई बच्चा वैसे-
बिना रुके वह बढ़ता जाये...
नए बिम्ब
कुछ शब्द अछूते,
रच प्रतीक नव
अपने बूते।
भाव बिम्ब लय, निर्मल भाषा
निर्मल जल में कमल खिला सा
विष को अमिय बनाये...
कुछ नये बिम्ब,प्रतीक देखे हैं इस नवगीत में। शिव का आह्वान करना बहुत ही प्रभावी भाव है । धन्यवाद आपका ।
जवाब देंहटाएंपाँव बड़े
जवाब देंहटाएंआतंक के देखे,
रह गए सारे
हक्के-बक्के।
ख़ून-ख़राबा, गोला-बारी
गलियाँ सूनी मरघट चहके।
पौरुषता को कभी न भाये।
...बढ़िया गीत... धन्यवाद