31 जुलाई 2010

१२ : मुकुलित कुमुद मृणालिनी : शारदा मोंगा

सखि प्राणप्रिये हे सुंदरी
मम हृदय कुञ्ज निवासिनी

मृदु मंद गंधित कमलनयनी
सौरभ सुखद सुहासिनी
नवनील नीरज नीरजा
अरविन्द पुष्ट उरोजिनी
मुकुलित कुमुद मृणालिनी
मम हृदय कुञ्ज निवासिनी

मुखारविंद, कर, पद्म चरण
कंज लोचन कंजारुणं
प्रमुदित अरविन्द लोचना
विहंसित स्मिता सुलोचना
लोल ललित हे पद्मिनी
मम हृदय कुञ्ज निवासिनी

तव प्रेम चाह की प्रतीक्षा
मम हृदये कुरु अमृतवर्षा
मृदु कोमल सुमधुर भाषिणी
मम हृदय कुंज निवास कुरु
छविनील सुनील सरोजिनी

सखि प्राणप्रिये हे सुन्दरी
मम हृदय कुञ्ज निवासिनी
--
शारदा मोंगा

10 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दी शब्दकोश से क्लिष्टतम शब्दों को छाँटकर एक जगह रख देने से अच्छी कविता या अच्छा नवगीत नहीं बन जाता। इसमें न गति है, न लय है, न तुक है, और एक ही बात जैसे आँखों की तारीफ तीन अलग अलग जगहों पर लगभग एक ही तरह से की गई है, हँसी की तारीफ भी कई जगहों पर एक सी की गई है। अनुप्रास अलंकार के चक्कर में एक अच्छा खासे नवगीत की जान ले ली गई है। शारदा जी इससे बहुत अच्छा कर सकती हैं। कविता कोश पर इनके अपने रचे कुछ पंजाबी लोकगीत भी हैं, उनको पढ़कर लगता है कि शारदा जी में एक कवियत्री बनने की क्षमता है, मगर अपनी आंचलिकता छोड़कर, अगर हिन्दी के क्लिष्टतम शब्दों को ही इस्तेमाल करती रहेंगी तो कैसे चलेगा। शब्दकोश तो सभी के पास होता है, मगर आपके दिल से जो निकले वो कविता होती है।

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  2. सुंदर कविता । संस्कृत प्रचुर होते हुए भी इसे समझ सकते हैं ।
    कहीं कहीं पुनरावृत्ती है पर है सुंदर ।

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  3. बहुत बढ़िया रचना है!
    --
    मित्रता-दिवस की शुभकामनाएँ!

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  4. विमल कुमार हेड़ा।2 अगस्त 2010 को 8:25 am बजे

    एक अच्छी रचना के लिये शारदा जी को बहुत बहुत बधाई, बहुत ही अच्छा प्रयास है।
    धन्यवाद
    विमल कुमार हेड़ा।

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  5. मैं आलोचना कर्ता से क्षमना चाहती हूं:
    मैं नहीं समझती कि मेरे गीत में लय और तुक की नितांत कमी रही है. कृपया पुन: ध्यान दें और पढ़ें.
    कमल के पर्यायवाची शब्द आपको क्लिष्टतम क्यों लगे हैं,
    ये शब्द तो बहुत प्रयोग में किये जाते रहे हैं. इनके लिए शब्दकोष की आवश्यकता तो आप जैसे व्यक्तित्व के लिए आश्चर्य की बात हो जाएगी.
    कोई अनुप्रास अलंकार के चक्कर की बात नहीं है. बड़े सामान्य रूप से लिखा गया है.
    पुनुरावृति हुई है तो क्या लय और गति भी (आप द्वारा)दुहराने जैसी ही बात हुई न?

    ध्यान दें: "शब्द-भंडार जितना अधिक होगा नवगीत उतना अच्छा लिख सकेंगे।" नवगीत लिखने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि प्रकृति का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करें और जब स्वयं को प्रकृति का एक अंग मान लेगें तो लिखना सहज हो जाएगा।
    -- डॉ. जगदीश व्योम

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  6. मात्राएँ देखिये:
    पहले अंतरे में १७, १३, १४, १४, १४, १५ मात्राएँ;
    दूसरे में १५, १४, १४, १४, १३, १५ मात्राएँ;
    तीसरे में १६, १६, १६, १५, १५ मात्राएँ हैं।
    मात्राओं की विषमता प्रवाह में बाधक है, चरण का तुक कंजारुणं से नहीं मिलता, प्रतीक्षा का अमृतवर्षा से नहीं मिलता, भाषिणी का कुरु से नहीं मिलता और नवगीत की प्रमुख विशेषता उसमें आंचलिकता का होना है जैसे शारदा जी पंजाब से हैं तो पंजाबी का होना। संस्कृतनिष्ठ रचनाएँ तो बहुत सारी लिखी जा चुकी हैं भूतकाल में, इसीलिए तो नवगीत की विशेषता उसमें अपनी मिट्टी की खुशबू यानी आंचलिकता का होना है। रही बात शब्द भंडार की तो जिस भाषा में ये नवगीत लिखा गया है क्या वही भाषा कवियत्री रोजमर्रा की जिन्दगी में भी इस्तेमाल करती हैं, यदि नहीं, तो ये केवल बनावटीपन है, ऐसे शब्द तब इस्तेमाल किये जाते हैं जब सामान्य शब्दों से लय और तुक ना बन रहा हो और विशेष शब्दों को इस्तेमाल करने की नौबत आ जाए, यहाँ पर तो इनके इस्तेमाल से तुक भी बिगड़ रहा है और मात्राओं की समानता भी। बाकी तो व्योम जी स्वयं ही पंडित हैं, मैं उनके विचार इस विषय में और विस्तार से जानना चाहूँगा ताकि सभी को इस बारे में और जानकारी मिले।

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  7. "संस्कृति व लोकतत्त्व का समावेश हो।
    तुकान्त की जगह लयात्मकता को प्रमुखता दें।"
    "अंतरे की अंतिम पंक्ति मुखड़े की पंक्ति के समान (तुकांत) हो जिससे अंतरे के बाद मुखड़े की पंक्ति को दोहराया जा सके।"
    'डॉ. जगदीश व्योम'

    माननीय महोदय,
    मात्राओं की गणना पुन: सही से करेंगे तथा उपरोक्त कथनानुसार तुकान्त की जगह लयात्मकता को प्रमुखता देंगे,
    तो मेरा गीत आप स्वयं गाने लगेंगे.
    शेष- पंजाबियों की आंचलिकता से कुछ विशेष लगाव दिखता है. संस्कृत तो हिंदी की जननी है.
    हिंदी का शब्द भंडार उस ही से जुड़ा है.

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  8. गीत सराहनीय है. कमल के इतने पर्यायों को गूंथना भी एक अच्छा प्रयोग है. तुलसी ने समुद्र को लेकर एक दोहे में यह प्रयोग किया है-
    बांध्यो जलनिधि नीरनिधि, जलधि सिन्धु वारीश.
    सत्य तोयनिधि कंपति, उदधि पयोधि नदीश..

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  9. “ाारद मोंगाजी बेषक इस नवगीत में आपने
    अनमोल मूंगा मोतियों को पिरो दिया है।षत् “ात् साधुवाद आपको

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