देह कमल
स्नेह कमल तन कमल मन कमल
मुझको तो भाते हैं सुमुखि तेरे
वचन कमल
संसृति सरोवर है
पोखर है ताल है
दृश्यमान जल इसमें
अनदेखा जाल है
गंतव्य बतलाते
कमलवत ये नयन कमल
मुझको तो भाते हैं सुमुखि तेरे
वचन कमल
कर कमलों से छू लो
खिल जाए जीवन दल
भ्रमर-सा भटकता हूँ
ठहर जाऊँ बस दो पल
प्रेम वेदी पर अर्पण
कर दूँ मैं सुमन कमल
मुझको तो भाते हैं सुमुखि तेरे
वचन कमल
कविता नहीं है यह
अंतस का राग है
हिम के अंतस्तल में
धुँधुआती आग है
अनवरत इस यात्रा में
कुम्हलाए न प्रण कमल
मुझको तो भाते हैं सुमुखि तेरे
वचन कमल
--
सिद्धेश्वर सिंह
स्नेह कमल तन कमल मन कमल
मुझको तो भाते हैं सुमुखि तेरे
वचन कमल
संसृति सरोवर है
पोखर है ताल है
दृश्यमान जल इसमें
अनदेखा जाल है
गंतव्य बतलाते
कमलवत ये नयन कमल
मुझको तो भाते हैं सुमुखि तेरे
वचन कमल
कर कमलों से छू लो
खिल जाए जीवन दल
भ्रमर-सा भटकता हूँ
ठहर जाऊँ बस दो पल
प्रेम वेदी पर अर्पण
कर दूँ मैं सुमन कमल
मुझको तो भाते हैं सुमुखि तेरे
वचन कमल
कविता नहीं है यह
अंतस का राग है
हिम के अंतस्तल में
धुँधुआती आग है
अनवरत इस यात्रा में
कुम्हलाए न प्रण कमल
मुझको तो भाते हैं सुमुखि तेरे
वचन कमल
--
सिद्धेश्वर सिंह
डॉ. सिद्धेश्वर सिंह का
जवाब देंहटाएंनवगीत बहुत ही बढ़िया रहा!
--
पढ़कर बहुत ही आनन्द आ गया!
अति सुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएंइस सत्र का श्रेष्ठ गीत. साधुवाद. सिद्धि सिद्धेश्वर के पास न हो तो कहाँ होगी? साधुवाद...
जवाब देंहटाएंप्रेम वेदी पर अर्पण
जवाब देंहटाएंकर दूँ मैं सुमन कमल
मुझको तो भाते हैं सुमुखि तेरे
वचन कमल
सुन्दर भाव लिये एक अच्छा नवगीत सिद्धेश्वर जी का बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।