पानी बन्द हुआ बोतल में
पंक न कहीं मिले
कैसे कमल खिले
भूपालों के बन्धक हुए
सरोवर सारे
जलकुम्भी ने अपने
इतने पैर पसारे
आतंकित हो
हंस फिरें सब मारे मारे
सजे केकटस बाजारों में
सस्ते भाव मिले
कैसे कमल खिले
ढका हुआ है सत्य
घोर मिथ्या बादल से
क्षितिज हो गया काला
आतंकी काजल से
हार रहे यम नियम
कपट छलबल धनबल से
जब तक मैत्री सद् भावों का
सूर्य नहीं निकले
कैसे कमल खिले
कीचड़ में ही
बहुधा कमल खिला करते हैं
कहने भर को है
इसलिये कहा करते हैं
किन्तु कमल के लिये सभ्यजन
कीचड़ नहीं किया करते हैं
कमला हों या कमलनाथ हों
सबके होठ सिले
कैसे कमल खिले
--
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
पंक न कहीं मिले
कैसे कमल खिले
भूपालों के बन्धक हुए
सरोवर सारे
जलकुम्भी ने अपने
इतने पैर पसारे
आतंकित हो
हंस फिरें सब मारे मारे
सजे केकटस बाजारों में
सस्ते भाव मिले
कैसे कमल खिले
ढका हुआ है सत्य
घोर मिथ्या बादल से
क्षितिज हो गया काला
आतंकी काजल से
हार रहे यम नियम
कपट छलबल धनबल से
जब तक मैत्री सद् भावों का
सूर्य नहीं निकले
कैसे कमल खिले
कीचड़ में ही
बहुधा कमल खिला करते हैं
कहने भर को है
इसलिये कहा करते हैं
किन्तु कमल के लिये सभ्यजन
कीचड़ नहीं किया करते हैं
कमला हों या कमलनाथ हों
सबके होठ सिले
कैसे कमल खिले
--
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
ये नवगीत हम जैसे नौसिखियों के लिये प्रेरणा और उदाहरण है। अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवर्तमान समस्याओं को उजागर करता एक सुन्दर एवं सशक्त नवगीत कटारे जी को बहुत बहुत बधाई। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंविमल कुमार हेड़ा।
एक अच्छे नवगीत के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंपानी बन्द हुआ बोतल में
पंक न कहीं मिले
कैसे कमल खिले
भूपालों के बन्धक हुए
सरोवर सारे
जलकुम्भी ने अपने
इतने पैर पसारे
आतंकित हो
हंस फिरें सब मारे मारे
सजे केकटस बाजारों में
सस्ते भाव मिले
कैसे कमल खिले
सुन्दर पंक्तियां!
प्रियवर कटारे जी का सुन्दर, सहज, समकालीन सत्य का उद्घाटन करता नवगीत. कैक्टस बाजारों में सजे हैं, कमल आखिर खिले तो कैसे. गीत के लक्षित भावबोध का आरम्भ से अंत तक निर्वाह गीत के सम्प्रेषण को प्रभावशाली बना देता है. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.कथ्य, शिल्प और शब्द चयन हर कसौटी पर खरा नवगीत. साधुवाद. मुझ विद्यार्थी के लिये यह सत्र ज्ञान कोष है. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंशास्त्री नित्यगोपाल कटारे जी का नवगीत बहुत कुछ व्यक्त कर रहा है। कभी कल्पना करते थे कि यदि पानी भी मोल मिलने लगे तो क्या होगा ? और अब पानी मोल बिक रहा है वह भी इतना महँगा कि आम आदमी तो शुद्ध पानी पी ही नहीं सकता। एक नवगीतकार कितनी पैनी निगाह लगाये रहता है समाज की हर एक गतिविधि पर ...... यह कोई इस नवगीत से सीखे....... लय और तुक एकदम दुरुस्त ....... वधाई हो कटारे जी ।
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