दिन बरखा-बिजुरी के
ताल भरे
कमल खिले
रात सुना मेघराग
दिन भर घर बदराया
छत पर हर सांझ दिखा
इन्द्रधनुष का साया
बिरवे सब हरे हुए
पीपल के
पात हिले
कमल-पात बूँद-बूँद
सुख सहज सहेज रहे
कजरी ने बदरा से
उस सुख के हाल कहे
बार-बार मेघराज
बरगद से
गले मिले
भीज-भीज
फूलों की पगडंडी हुई साँस
धुली-धुली हवा भरे
मन में मीठे हुलास
ताप मिटे सारे ही
नहीं रहे
कोई गिले
--
कुमार रवींद्र
ताल भरे
कमल खिले
रात सुना मेघराग
दिन भर घर बदराया
छत पर हर सांझ दिखा
इन्द्रधनुष का साया
बिरवे सब हरे हुए
पीपल के
पात हिले
कमल-पात बूँद-बूँद
सुख सहज सहेज रहे
कजरी ने बदरा से
उस सुख के हाल कहे
बार-बार मेघराज
बरगद से
गले मिले
भीज-भीज
फूलों की पगडंडी हुई साँस
धुली-धुली हवा भरे
मन में मीठे हुलास
ताप मिटे सारे ही
नहीं रहे
कोई गिले
--
कुमार रवींद्र
बहुत सुंदर रचना जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नव गीत।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंकमल-पात बूँद-बूँद
सुख सहज सहेज रहे
कजरी ने बदरा से
उस सुख के हाल कहे
कमल और कजरी दोनों को सम्बंधित कर कमल के सांस्कृतिक महत्व को नये तरीके से व्यक्त किया गया है.धन्यवाद!
शानदार रचना. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंहो विदेह, हँसे देह
पराया निज लगे गेह.
सिहरन है, फुहरन है
भावों के सरस मेह.
नयन मिले, झुके, उठे,
दिल से दिल
विहँस मिले.
रात सुना मेघराग
जवाब देंहटाएंदिन भर घर बदराया
छत पर हर सांझ दिखा
इन्द्रधनुष का साया
बिरवे सब हरे हुए
पीपल के
पात हिले
ज्यों ज्यों नवगीत की यह कार्यषाला अपने मुकाम पर पहंुच रही त्यों त्यों वह और भी जवान हो रही है मानो जेठ के विरवे को बरसात का जोड़न मिल रहीं है और वह लहलहाता जा रह है कम से कम आपकी उपर्युक्त पंक्तियों से तो यही लगता है । बधाई हो रवीन्द्रजी आपको इस सुमधुर गीत के लिए।
magho ki ritu aai
जवाब देंहटाएंaai magho ki ritu
machal machal kar
umad ghumad kar
aye tum badli ban kar
par rahi dhara pyasi hi
kyu n barse tum pavas ban kar
hole hole madhyam madhyam
har aur tumhara hunkara
par rahi dhara pyasi hi
kyu n tumne kheto ko lahraya
magho ki ritu aai
aai magho ki ritu
par rahi dhara pyasi hi
kyu tumne itna bharmaya
Posted by saru at 5: