10 सितंबर 2010

०५. लो बरस गए : शशि पाधा

मीठी-मीठी मचा गुदगुदी
मन में सरस गए
बदरा बरस गए कजरारे
बदरा बरस गए

अभी-अभी तो
नभ गलियों में
इठलाते से आए थे
कभी घूमते
कभी झूमते
भँवरे से मँडराए थे
देख घटा की अलक श्यामली
अधरों से यूँ परस गए
बदरा बरस गए मतवारे
बदरा बरस गए

रीती नदिया
झुलसी बगिया
डाली-डाली प्यास जगी
जल-जल सुलगी
दूब हठीली
नेह झड़ी की आस लगी
भरी गगरिया लाए मेघा
झर-झर मनवा सरस गए
बदरा बरस गए कजरारे
बदरा बरस गए

सुन के तेरे
ढोल-नगाड़े
धरती द्वारे आन खड़ी
रोली-चंदन
मिश्री-आखत
धूप और बाती थाल धरी
रोम-रोम से रोए, साजन
बिन तेरे हम तरस गए
बदरा बरस गए लो कारे
बदरा बरस गए
--
शशि पाधा

15 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी पंक्तिया है .....


    अच्छा लिखा है ....
    एक बार इसे भी पढ़े _:-
    ( बाढ़ में याद आये गणेश, अल्लाह और ईशु ....)
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_10.html

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तम द्विवेदी10 सितंबर 2010 को 7:01 pm बजे

    लय-ताल से युक्त सुन्दर नवगीत के लिए शशि जी को बहुत-बहुत बधाई!
    देख घटा की अलक श्यामली
    अधरों से यूँ परस गए
    ...सुन्दर!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. इस कार्याषाला की रचनाएं न केवल बदराई हुई हैं बल्कि गदराई हुई भी
    मेरे कहने का आषय उनकी परिपक्वता से है। और इस पुश्टता और परिपक्वता
    के बेजोर उदाहरण है “ाषिपाधा के नवगीत।जिसे जिधर से पढ़ू मन उसके साथ बरबस प्रवाहित हो जाता है। इस सुकृति के लिए जिस किसी भी “ाब्द मे आपको आभार प्रकट करूं वे “ाब्द बौने पड़ रहे है।

    जवाब देंहटाएं
  4. इस कार्याषाला की रचनाएं न केवल बदराई हुई हैं बल्कि गदराई हुई भी
    मेरे कहने का आषय उनकी परिपक्वता से है। और इस पुश्टता और परिपक्वता
    के बेजोर उदाहरण है “ाषिपाधा के नवगीत।जिसे जिधर से पढ़ू मन उसके साथ बरबस प्रवाहित हो जाता है। इस सुकृति के लिए जिस किसी भी “ाब्द मे आपको आभार प्रकट करूं वे “ाब्द बौने पड़ रहे है।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर कल्पनाएँ, अति सुंदर मानवीकरण!
    सुन के तेरे
    ढोल-नगाड़े
    धरती द्वारे आन खड़ी
    रोली-चंदन
    मिश्री-आखत
    धूप और बाती थाल धरी
    रोम-रोम से रोए, साजन
    बिन तेरे हम तरस गए
    बदरा बरस गए लो कारे
    बदरा बरस गए

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन के तेरे
    ढोल-नगाड़े
    धरती द्वारे आन खड़ी
    रोली-चंदन
    मिश्री-आखत
    धूप और बाती थाल धरी
    रोम-रोम से रोए, साजन
    बिन तेरे हम तरस गए
    बदरा बरस गए लो कारे
    dharti dvara baadalon ka achchha svaagat hai geet vakai bahut achchha laga

    जवाब देंहटाएं
  7. itna madhur geet hai ki man khil utha.
    bahut bahut badhai.
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  8. विमल कुमार हेड़ा।13 सितंबर 2010 को 7:13 am बजे

    रीती नदिया
    झुलसी बगिया
    डाली-डाली प्यास जगी
    जल-जल सुलगी
    दूब हठीली
    नेह झड़ी की आस लगी
    भरी गगरिया लाए मेघा
    झर-झर मनवा सरस गए
    बदरा बरस गए कजरारे
    बदरा बरस गए
    बहुत सुन्दर रचना शशि जी को बहुत बहुत बधाई,
    धन्यवाद।
    विमल कुमार हेड़ा।

    जवाब देंहटाएं
  9. शशि जी !
    हठीली दूब , ढोल--नगाड़े , रोली --चन्दन , मिश्री-आखत , धूप--बाती |
    बहुत ही सुंदर प्रतीक | मन प्रफुल्ल हुआ |

    प्रवीण

    जवाब देंहटाएं
  10. सामान्य गीत है पर कहीं कही बड़ी प्यारी चमक है, जैसे जल-जल सुलगी दूब हठीली में एक मधुर जिद दिखती है, बहुत अच्छी, एक बच्ची की जिद जैसी लगती है. शशि जी ओ बधाई

    जवाब देंहटाएं
  11. कित्ती प्यारी और भावपूर्ण रचना ...बधाई.

    _____________
    'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है...

    जवाब देंहटाएं
  12. शशि जी नवगीत में देशज माटी का सौंधापन मन को मुकुलित कर गया. बधाई.

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।