24 सितंबर 2010

१०. बहुत हुआ पानी : सिद्धेश्वर सिंह

बहुत हुई बारिश, बहुत हुआ पानी
खत्म करो बादल जी, अब ये कहानी

धँस रही हैं सड़के
दरके पहाड़
हरियाये खेतों में
आ गई है बाढ़
इंद्रदेव वापस लें, ऐसी मेहरबानी
खत्म करो बादल जी, अब ये कहानी

बंद हुए बच्चों के
सारे स्कूल
कैद हो घरों में
खेल गए भूल
जल से है त्रस्त अब, हर एक प्राणी
खत्म करो बादल जी, अब ये कहानी

कवियों को प्यारा है
पावस का मास
किन्तु अतिवॄष्टि ने
छीना उल्लास

मेघ बजें, पर न आयें बरखा महारानी
खत्म करो बादल जी, अब ये कहानी
--
सिद्धेश्वर सिंह

10 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह सर!
    इतना सुन्र गीत सरल शब्दों में रच दिया!
    --
    बहुत-बहुत बधाई!

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  2. सरल शब्दों में पीड़ा को व्यक्त किया और अच्छा लगा .

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  3. बहुत अच्छा नवगीत और सबके मन कि बात कह दी है

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  4. अजी धंस रही है सडके माना लेकिन अब भगवान भी इन लोगो की पोल खोलने मै आम जनता की मदद कर रहे है, क्योकि नयी बनी सडक पहली ही बरसात मै धांस रही है, पुल टूट रहे है, धन्यवाद करो भगवान का जो इन सब की खटिया खडी कर रहा है

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  5. सिद्धेश्वर जी!
    आपकी कलम से ऐसी ही प्रौढ़ रचना की अपेक्षा होती है. बधाई. आपने सटीक और मौलिक कथ्य को समेटा है. अन्य पक्ष आपकी अदालत में प्रस्तुत है:
    *
    मानव तो रोके न अपनी मनमानी.
    'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
    *
    जंगल सब काट दिये
    दरके पहाड़.
    नदियाँ भी दूषित कीं-
    किया नहीं लाड़..
    गलती को ले सुधार, कर मत शैतानी.
    'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
    *
    पाट दिये ताल सभी
    बना दीं इमारत.
    धूल-धुंआ-शोर करे
    प्रकृति को हताहत..
    घायल ऋतु-चक्र हुआ, जो है लासानी...
    'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
    *
    पावस ही लाता है
    हर्ष सुख हुलास.
    तूने खुद नष्ट किया
    अपना मधु-मास..
    मेघ बजें, कहें सुधर, बचा 'सलिल' पानी.
    'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
    *

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  6. इंद्रजी का देखो रोष,
    उड़ गया है सबका होश!
    सावनभादों की ले आढ़
    यमुना में कर दी है बाढ़,
    जल-थल एक,
    नभ नाले अनेक
    टूटे कगार,
    जल बेशुमार.

    "जल से है त्रस्त अब, हर एक प्राणी
    खत्म करो इंद्र जी, अब ये कहानी"...अच्छी अभिव्यक्ति

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  7. बहुत सुन्दर नवगीत| बदलते परिवेश को बहुत ही सुन्दर तरीके से व्यक्त किया है|

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  8. मेघ की मनमानी और इससे हो रही जनसामान्य की परेषानी को
    लय व गति में गुुंफन कर उसे हृदयस्पर्षी बनाने का हुनर तो कोई
    आपसे सीखे भाई । लाख लाख “ाुभकामनाएं इस उम्मीद के साथ
    कि आगे आप नवगीत की महफिल को अपनी रौनको से नवाजते रहेंगे।

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  9. धँस रही हैं सड़के
    दरके पहाड़
    हरियाये खेतों में
    आ गई है बाढ़
    इंद्रदेव वापस लें, ऐसी मेहरबानी
    खत्म करो बादल जी, अब ये कहानी

    बंद हुए बच्चों के
    सारे स्कूल
    कैद हो घरों में
    खेल गए भूल
    जल से है त्रस्त अब, हर एक प्राणी
    खत्म करो बादल जी, अब ये कहानी
    khoob likha hai
    badhai
    rachana

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