धूल-भरी राहों में तपते
भूले पल-छिन अपने को
कजरारे बादल अम्बर पर
ले आए फिर सपने को
सुधियों को जैसे सुध आई
अकुलाकर पीछे देखा
खिंच गई तभी अन्तर में
वह खोई स्वर्णिम रेखा
कोरा कागज निखरा जैसे
रंग-तरंगें छपने को
शीतल संदेशों से नभ की
भर आई फिर गागर है
धड़कन में उतर गया रस का
लहरों वाला सागर है
जाग उठी हैं सोई सासें
जीवन–जीवन जपने को
बन्द अधर पर चुम्बन-जैसी
अमृत की उपमाओं की
विजय पताकाएँ फहरातीं
मुरझाई तृष्णाओं की
रिमझिमवाली चकाचौंध से
बेसुध आँखें झपने को
--
निर्मला जोशी
निर्मला जी एक सुन्दर नवगीत के लिए बधाई। सादर।
जवाब देंहटाएंशीतल संदेशों से नभ की
जवाब देंहटाएंभर आई फिर गागर है
धड़कन में उतर गया रस का
लहरों वाला सागर है
जाग उठी हैं सोई सासें
जीवन–जीवन जपने को
उपर्यक्त पंक्तिया विशेष रूप से अच्छी लगी और पूरा गीत ही अच्छा लग रहा है
प्रतिकात्मकता व चित्रात्मकता से युक्त एक अच्छे नवगीत के लिए निर्मला जी को बहुत-बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंधूल-भरी राहों में तपते
भूले पल-छिन अपने को
कजरारे बादल अम्बर पर
ले आए फिर सपने को
सुधियों को जैसे सुध आई
अकुलाकर पीछे देखा
खिंच गई तभी अन्तर में
वह खोई स्वर्णिम रेखा
कोरा कागज निखरा जैसे
रंग-तरंगें छपने को
सुंदर पंक्तियाँ...
बन्द अधर पर चुम्बन-जैसी
जवाब देंहटाएंअमृत की उपमाओं की
विजय पताकाएँ फहरातीं
मुरझाई तृष्णाओं की
रिमझिमवाली चकाचौंध से
बेसुध आँखें झपने को
--
पे्रम की अनछुई बानगी से लबरेज एक अनूठा नवगीत
जिस पढ़ते हुए “शायद ही कोई हो जो सराबोर न हो।
हार्दिक बधाई निर्मलाजी
धूल-भरी राहों में तपते
जवाब देंहटाएंभूले पल-छिन अपने को
कजरारे बादल अम्बर पर
ले आए फिर सपने को
सुधियों को जैसे सुध आई वाह... वाह... क्या बात है.
अकुलाकर पीछे देखा
खिंच गई तभी अन्तर में
वह खोई स्वर्णिम रेखा
कोरा कागज निखरा जैसे
रंग-तरंगें छपने को --- अनूठी अभिव्यक्ति
शीतल संदेशों से नभ की
भर आई फिर गागर है
धड़कन में उतर गया रस का
लहरों वाला सागर है
जाग उठी हैं सोई सासें
जीवन–जीवन जपने को -- बहत खूब, यह जिजीविषा जगाना ही तो सृजन को सार्थक करता है.
बन्द अधर पर चुम्बन-जैसी
अमृत की उपमाओं की
विजय पताकाएँ फहरातीं
मुरझाई तृष्णाओं की -- मन को प्रफुल्लित करती पंक्तियाँ...
रिमझिमवाली चकाचौंध से
बेसुध आँखें झपने को
निर्मला जी! समूचा नवगीत... बार-बार पठनीय. इस सत्र की उपलब्धि. बधाई.