11 अक्तूबर 2010

२४. अमृतधारा-सा पानी

पानी-पानी-पानी
अमृतधारा-सा पानी
बिन पानी सब सूना-सूना
हर सुख का रस पानी

पावस देख पपीहा बोले
दादुर भी टर्राए
मेह आओ, ये मोर बुलाए
बादऱ घिर-घिर आए
मेघ बजे, नाचे बिजुरी
और गाए कोयल रानी
पानी-पानी-पानी

रुत बरखा की प्रीत सुहानी
भेजा पवन झकोरा
द्रुमदल झूमे, फैली सुरभि
मेघ बजे घनघोरा
गगन समंदर ले आया
धरती को देने पानी
पानी-पानी-पानी

बाँध भरे, नदिया भी छलकीं
खेत उगाए सोना
बाग-बगीचे हरे-भरे
धरती पर हरा बिछौना
मन हुलसे, पुलकित तन झंकृत
खुशी मिली अनजानी
पानी-पानी-पानी
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आकुल
(कोटा, राजस्थान)

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