टप्-टप्-टप् बूँद गिरे
अंतस में हूक उठे
मेघ बजे
आमों की बगिया मॆं
मस्ती बौराई है
बरसेंगे गरज-गरज
सूचना यह आई है
मत बरसो, मत बरसो
कौन कहे
झरनों की हर-हर पर
रीझ-रीझ जाता मन
गुन-गुन करते हँसते
हरे-हरे वन-उपवन
सर-सर-सर चले पवन
विटप हिले
सावन की रातों में
सजना बिन घर सूना
दिवस ढोए काँधों पर
रातों का दुख दूना
मन के दीपक लगते
बुझे-बुझे
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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
१२ - शिवम् सुंदरम् नगर, छिंदवाड़ा (म.प्र.)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है। बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंसावन की रातों में
जवाब देंहटाएंसजना बिन घर सूना
दिवस ढोए काँधों पर
रातों का दुख दूना
मन के दीपक लगते
बुझे-बुझे
वाह! अति मार्मिक कल्पना। एक भावपूर्ण नवगीत के लिये बधाई स्वीकार करें
सादर,
शशि पाधा
सुन्दर रचना , वास्तविक नव-गीत कहा जासकता है ।
जवाब देंहटाएंउत्तम नवगीत. बधाई...
जवाब देंहटाएंनवगीत की पाठशाला क्रमांक दस में मेरे लिखे गीत पर बधाई देने वाले सभी प्रशंसकों को बहुत बहुत धन्यवाद| दशहरा दीवाली की शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंप्रभुदयाल श्रीवास्तव