13 अक्तूबर 2010

२६. उस तरफ कमरे के बाहर

रात-भर होती रही बारिश
खिड़कियों के उस तरफ कमरे के बाहर

और मैं चुपचाप तन्हा बौखलाया
सुन रहा था बादलों का शोर
भीगी-भीगी-सी हवा का एक टुकड़ा
जागती आँखों में लिखने लग गया था भोर
मुस्कुराकर नींद मेरी
सो रही थी उस तरफ कमरे के बाहर
रात-भर होती रही बारिश
खिड़कियों के उस तरफ कमरे के बाहर

मोटी-मोटी पुस्तकों के भारी-भरकम शब्द
बेवजह मुझको चिढ़ाने लग गए थे कल
धीरे-धीरे बिछ रही थी खालीपन की एक परत
कसमसाने लग गया था प्यार का संबल
हाथों की अनमिट लकीरें
जाने किसको ढूँढ़ती थीं उस तरफ कमरे के बाहर
रात-भर होती रही बारिश
खिड़कियों के उस तरफ कमरे के बाहर
--
सिद्धेश्वर सिंह

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