आसमान में
उमड़-घुमड़ कर छाये बादल
श्वेत-श्याम से
नजर आ रहे मेघों के दल
कही छाँव है कहीं घूप है
इन्द्रधनुष कितना अनूप है
मनभावन रंग-
रूप बदलता जाता पल-पल
आसमान में
उमड़-घुमड़ कर छाये बादल
मम्मी भीगी, मुन्नी भीगी
दीदी जी की चुन्नी भीगी
मोटी बून्दें
बरसाती निर्मल-पावन जल
आसमान में
उमड़-घुमड़ कर छाये बादल
हरी-हरी उग गई घास है
धरती की बुझ गई प्यास है
नदियाँ-नाले
नाद सुनाते जाते कल-कल
आसमान में
उमड़-घुमड़ कर छाये बादल
बिजली नभ में चमक रही है
अपनी धुन में दमक रही है
वर्षा ऋतु में
कृषक चलाते खेतो में हल
आसमान में
उमड़-घुमड़ कर छाये बादल
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डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक
टनकपुर रोड, खटीमा,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
babahut sunder bhav
जवाब देंहटाएंbadhai
rachana
मनहर गीत... लय.. बिम्ब... शब्द चयन सभी उत्तम...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
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