16 अक्तूबर 2010

२९. सूर्य बंद कमरे से झाँके

पायल पहिन बिजुरिया नाचे
प्रेमगीत दादुरिया बाँचे
तबला मेघ बजे
राग मल्हार सजे

झर-झर-झर-झर झरने झरते
लगते गिटार से
तेज हवा से झंकृत होते
पत्ते सितार से
आनंदित हो मोर-मोरनी
निकले सजे-धजे

पर्वत अविचल सौम्य शांत है
योगी सिद्ध हुआ
सूर्य बंद कमरे से झाँके
लगता वृद्ध हुआ
नदियाँ हुई सभी अनियंत्रित
सब तटबंध तजे
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शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

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