17 अक्तूबर 2010

मन की महक : कार्यशाला : ११ : का विषय

क्वाँर की गुनगुनी होती धूप और धान की पकती हुई बालियों की सुगंध से सबका मन महक-सा गया है! इसलिए कार्यशाला : ११ : का विषय भी "मन की महक" रखा गया है! विषय से आपको पहले ही अवगत कराया जा चुका है, ताकि नवगीतों के प्रकाशन में अधिक अंतराल न आए और आप बढ़िया रचना कर सकें! रचनाकारों से एक अनुरोध यह भी है कि वे अपने "मन की महक" को मात्र धान के खेतों की महक तक ही सीमित न रखें! वे अपने नवगीतों का सर्जन कुछ इस तरह से करें कि उसमें आए रूपकों, बिंबों, प्रतीकों, नवप्रयोगों से उनका अपना मन तो महके ही साथ ही पढ़नवाले का मन भी महकने लगे! रचनाकार अपने "मन की महक" को नवगीत में कैसे ढाले और ये शब्द उसके नवगीत में हों या न हों यह उसकी इच्छा पर निर्भर है! नवगीत हमारे पास ३१ अक्टूबर २०१० तक पहुँच जाना चाहिए। नवगीत केवल navgeetkipathshala@gmail.com के पते पर भेजें! अन्य पतों पर भेजे गए नवगीत स्वीकार नहीं किए जाएँगे! कार्यशाला : १० : के अंतिम नवगीत का प्रकाशन १६ अक्टूबर २०१० को हो गया है। कार्यशाला : ११ : के नवगीतों का प्रकाशन १८ अक्टूबर २०१० से प्रारंभ कर दिया जाएगा! इस बार आपको एक भी दिन के अंतराल का सामना नहीं करना पड़ेगा। शेष नियमावली पूर्ववत् रहेगी! स्नेहिल शुभकामनाओं के साथ -
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समूह : नवगीत की पाठशाला
(१७ अक्टूबर २०१०)

4 टिप्‍पणियां:

  1. विजयादशमी की बधाई एवं शुभकामनाएं

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  2. कार्यशाला : ११ : के नवगीतों का प्रकाशन १७ सितंबर २०१० से प्रारंभ कर दिया जाएगा!
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    कृपया तिथि में सुधार कर लें!
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    विजयादशमी की शुभकामनाएँ!

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  3. असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक
    विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएँ!

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  4. धन्यवाद, डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी!

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