महका-महका
मन-मंदिर रख सुगढ़-सलौना
चहका-चहका
आशाओं के मेघ न बरसे
कोशिश तरसे
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घर से
बासन माँजे, कपड़े धोए
काँख-काँखकर
समझ न आए पर-सुख से
हरसे या तरसे
दहका-दहका
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका-लहका
एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
कौन बनाए
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताए
मेहनत भूखी, चमड़ी सूखी
आँखें चमकें
कहाँ जाएगी मंजिल
सपने हों न पराए
बहका-बहका
सम्हल गया पग, बढ़ा राह पर
ठिठका-ठहका
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संजीव सलिल
एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
जवाब देंहटाएंकौन बनाए
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताए
बहुत अच्छा लिखा है आपने....गहरे अर्थ हैं इन पंक्तियों के....
गीत में मन की महक आ रही है!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना एक बार फिर आचार्य जी की कलम से। बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंआशाओं के मेघ न बरसे
जवाब देंहटाएंकोशिश तरसे
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घर से
बासन माँजे, कपड़े धोए
काँख-काँखकर
समझ न आए पर-सुख से
हरसे या तरसे
दहका-दहका
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका-लहका
bahut khoob aap ka likha sadaev hi sunder hota hai
bahut bahut badhai
saader
rachana
सम्पूर्ण गीत दिल की गहराईयों तक अपनी मधुर झंकार से सिक्त कर गया । हर पंक्ति लाजवाब । साधुवाद आदरणीय संजीव सलिल जी । प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंआपका आभार शत-शत...
जवाब देंहटाएंलख मयंक की छटा अनूठी
सज्जन हरषे.
नेह नर्मदा नहा मोनिका
रचना परसे.
नर-नरेंद्र अंतर से अंतर
बिसर हँस रहे.
हास-रास मधुमास न जाए-
घर से, दर से.
दहका-दहका
सूर्य सिंदूरी, उषा-साँझ संग
धधका-दहका...
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काँख-काँख कर, ऊँच-नीच यह कहो खोपड़ी अच्छा प्रयोग किया है। नवगीत के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंआशाओं के मेघ न बरसे
जवाब देंहटाएंकोशिश तरसे
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घर से
बासन माँजे, कपड़े धोए
काँख-काँखकर
समझ न आए पर-सुख से
हरसे या तरसे
दहका-दहका
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका-लहका
बहुत ही सुन्दर रचना
बधाई।