20 अक्तूबर 2010

०२. महका-महका

महका-महका
मन-मंदिर रख सुगढ़-सलौना
चहका-चहका

आशाओं के मेघ न बरसे
कोशिश तरसे
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घर से
बासन माँजे, कपड़े धोए
काँख-काँखकर
समझ न आए पर-सुख से
हरसे या तरसे
दहका-दहका
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका-लहका

एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
कौन बनाए
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताए
मेहनत भूखी, चमड़ी सूखी
आँखें चमकें
कहाँ जाएगी मंजिल
सपने हों न पराए
बहका-बहका
सम्हल गया पग, बढ़ा राह पर
ठिठका-ठहका
--
संजीव सलिल

8 टिप्‍पणियां:

  1. एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
    कौन बनाए
    ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
    कौन बताए
    बहुत अच्छा लिखा है आपने....गहरे अर्थ हैं इन पंक्तियों के....

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना एक बार फिर आचार्य जी की कलम से। बहुत बहुत बधाई।

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  3. आशाओं के मेघ न बरसे
    कोशिश तरसे
    फटी बिमाई, मैली धोती
    निकली घर से
    बासन माँजे, कपड़े धोए
    काँख-काँखकर
    समझ न आए पर-सुख से
    हरसे या तरसे
    दहका-दहका
    बुझा हौसलों का अंगारा
    लहका-लहका
    bahut khoob aap ka likha sadaev hi sunder hota hai
    bahut bahut badhai
    saader
    rachana

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  4. सम्‍पूर्ण गीत दिल की गहराईयों तक अपनी मधुर झंकार से सिक्‍त कर गया । हर पंक्ति लाजवाब । साधुवाद आदरणीय संजीव सलि‍ल जी । प्रणाम ।

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  5. आपका आभार शत-शत...

    लख मयंक की छटा अनूठी
    सज्जन हरषे.
    नेह नर्मदा नहा मोनिका
    रचना परसे.
    नर-नरेंद्र अंतर से अंतर
    बिसर हँस रहे.
    हास-रास मधुमास न जाए-
    घर से, दर से.
    दहका-दहका
    सूर्य सिंदूरी, उषा-साँझ संग
    धधका-दहका...

    ***************

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  6. काँख-काँख कर, ऊँच-नीच यह कहो खोपड़ी अच्‍छा प्रयोग किया है। नवगीत के लिए बधाई।

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  7. आशाओं के मेघ न बरसे
    कोशिश तरसे
    फटी बिमाई, मैली धोती
    निकली घर से
    बासन माँजे, कपड़े धोए
    काँख-काँखकर
    समझ न आए पर-सुख से
    हरसे या तरसे
    दहका-दहका
    बुझा हौसलों का अंगारा
    लहका-लहका
    बहुत ही सुन्दर रचना
    बधाई।

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