भर ख़ुशियों से चहक उठा
मन मेरा भी महक उठा
सूरज ने जब डाले पर्दे
धूप न जाने कहाँ चली
बाँधे गाँठ
हवाओं के सँग
मौसम महके गली-गली
बदली ऋतु तो
कण-कण में सुख
हौले-हौले चहक उठा
मन मेरा भी महक उठा
किरण खिली गदराए पेड़
वन में खग-मृग आतुर विचरे
आँचल पर
आकाशी तारे
ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे
कुसमित पवन
सजाए दीपक
नभ में चंदा दमक उठा
मन मेरा भी महक उठा
--
रचना श्रीवास्तव
atulaniya !!
जवाब देंहटाएंpad ke man ko khurak mili.
sarahniya.
सूरज ने जब डाले पर्दे
जवाब देंहटाएंधूप न जाने कहाँ चली
बाँधे गाँठ
हवाओं के सँग
मौसम महके गली-गली
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
आँचल पर
जवाब देंहटाएंआकाशी तारे
ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे
वाह.. वाह... सरस गीति रचना... बधाई.
किरण खिली गदराए पेड़
जवाब देंहटाएंवन में खग-मृग आतुर विचरे
आँचल पर
आकाशी तारे
ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे
बहुत ही सुन्दर रचना के लिये रचना जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
बदली ऋतु तो
जवाब देंहटाएंकण-कण में सुख
हौले-हौले चहक उठा
मन मेरा भी महक उठा
किरण खिली गदराए पेड़
वन में खग-मृग आतुर विचरे
आँचल पर
आकाशी तारे
ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे
वाह.. वाह रचना श्रीवास्तवजी
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
sundar shabdo ka chayan .........achchhi prastuti
जवाब देंहटाएंसुन्दर कल्पना से महकते हुए मनमोहक नवगीत के लिए रचना आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंकिरण खिली गदराए पेड़
वन में खग-मृग आतुर विचरे
आँचल पर
आकाशी तारे
ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे --बहुत ही अच्छी कल्पना है
शशि पाधा
aap sabhi ke sneh shbdon ke liye kya kahun shbd nhai mil rahe .bahut bahut dhnyavad
जवाब देंहटाएंrachana
rachanaji
जवाब देंहटाएंbahut acchaa likhatin hain aap.badhaaii
Prabhudayal Shrivastava
रचना श्रीवास्तव जी ने इन पंक्तियों में जो सहज भाषा प्रयोग की है , वह नवगीत में नए रंग भरने में सक्षम है । ।रामेश्वर काम्बोज
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