24 अक्तूबर 2010

०४. मन मेरा भी महक उठा

भर ख़ुशियों से चहक उठा
मन मेरा भी महक उठा

सूरज ने जब डाले पर्दे
धूप न जाने कहाँ चली
बाँधे गाँठ
हवाओं के सँग
मौसम महके गली-गली

बदली ऋतु तो
कण-कण में सुख
हौले-हौले चहक उठा
मन मेरा भी महक उठा


किरण खिली गदराए पेड़
वन में खग-मृग आतुर विचरे
आँचल पर
आकाशी तारे
ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे

कुसमित पवन
सजाए दीपक
नभ में चंदा दमक उठा
मन मेरा भी महक उठा
--
रचना श्रीवास्तव

10 टिप्‍पणियां:

  1. सूरज ने जब डाले पर्दे
    धूप न जाने कहाँ चली
    बाँधे गाँठ
    हवाओं के सँग
    मौसम महके गली-गली

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।

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  2. आँचल पर
    आकाशी तारे
    ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे

    वाह.. वाह... सरस गीति रचना... बधाई.

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  3. विमल कुमार हेड़ा।25 अक्तूबर 2010 को 8:10 am बजे

    किरण खिली गदराए पेड़
    वन में खग-मृग आतुर विचरे
    आँचल पर
    आकाशी तारे
    ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे
    बहुत ही सुन्दर रचना के लिये रचना जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद।
    विमल कुमार हेड़ा।

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  4. बदली ऋतु तो
    कण-कण में सुख
    हौले-हौले चहक उठा
    मन मेरा भी महक उठा


    किरण खिली गदराए पेड़
    वन में खग-मृग आतुर विचरे
    आँचल पर
    आकाशी तारे
    ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे
    वाह.. वाह रचना श्रीवास्तवजी
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।

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  5. सुन्दर कल्पना से महकते हुए मनमोहक नवगीत के लिए रचना आपको हार्दिक बधाई।

    किरण खिली गदराए पेड़
    वन में खग-मृग आतुर विचरे
    आँचल पर
    आकाशी तारे
    ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे --बहुत ही अच्छी कल्पना है


    शशि पाधा

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  6. aap sabhi ke sneh shbdon ke liye kya kahun shbd nhai mil rahe .bahut bahut dhnyavad
    rachana

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  7. rachanaji
    bahut acchaa likhatin hain aap.badhaaii

    Prabhudayal Shrivastava

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  8. रचना श्रीवास्तव जी ने इन पंक्तियों में जो सहज भाषा प्रयोग की है , वह नवगीत में नए रंग भरने में सक्षम है । ।रामेश्वर काम्बोज

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