चलो ढूँढ वो लाएँ चंदन
जिससे महक उठें मन
कब थे ऐसे फटे-हाल मन
अंतर्मन थे उपवन
पल-पल की ये भाग-दौड़ ही
रही भुलाए बचपन
मन के बिन कब पुष्प खिलेंगे
बंजर होंगे तन-मन
चलो ले आएँ वो स्पंदन
जिससे चहक उठें मन
प्रीत के बिरवे बोकर मन की
फसलें स्वयं उगानी
सूखे मन में नेह-नीर भर
कविता कोइ जगानी
मौन अधर रख आएँ बंसी
हर मन कहे कहानी
चलो ले आएँ वो अपनापन
जससे महक उठें मन
हम हैं बूँदें एक सिंधु की
पलक झपकते मिटतीं
हैं अनमोल खजाने मन क्यूँ
श्वास अटकते दिखतीं
खिले पंक में भी पंकज मन
यही सीख अपनानी
चलो ले आएँ नेह बंधन
जिससे बहक उठें मन
--
गीता पंडित
प्रीत के बिरवे बोकर मन की
जवाब देंहटाएंफसलें स्वयं उगानी
सूखे मन में नेह-नीर भर
कविता कोइ जगानी
मौन अधर रख आएँ बंसी
हर मन कहे कहानी
चलो ले आएँ वो अपनापन
जससे महक उठें मन
bahut pyari abhivyakti
badhai
rachana
अति सुंदर रचना जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंNavgeet ki Pathshala mein geeton ki shabnami tazgi ati lubhawani hai..
जवाब देंहटाएंGeeta Pandit ko is sunder aagaz ke liye shubhkamnayein
चलो ढूँढ वो लाएँ चंदन
जिससे महक उठें मन
Aaj ke Vidushit mahaul mein iski zaroorat hai. Prenatmak pantion ke liye sadhuwaad
Devi nangrani
प्रीत के बिरवे बोकर मन की
जवाब देंहटाएंफसलें स्वयं उगानी
सूखे मन में नेह-नीर भर
कविता कोइ जगानी
मौन अधर रख आएँ बंसी
हर मन कहे कहानी
चलो ले आएँ वो अपनापन
जससे महक उठें मन
हार्दिक स्वागत गीता जी, अति सुंदर रचना
सरस-सहज मन को छूती गीति रचना हेतु बधाई.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंसलिल जी
मंडलदास जी....आभार..
शुभ कामनाएँ....
@ mandalass
जवाब देंहटाएंमंडलदास लिखने केलियें क्षमा प्रार्थी हूँ...
आभार...
@ देवी
जवाब देंहटाएंआपके उत्साहवर्धन के लियें आभारी हूँ..
रचना जी भाटिया जी...आभार आपका...