1 नवंबर 2010

०८. मन-अँगना में चंदन सुरभि

मन-अँगना में चंदन सुरभि
केसर अंग झरे
जूही-चंपा सखी-सहेली
कुंकुम माँग भरे
सजधज निकली सोन गुजरिया
रूप-गंध बिखरे

ताल-तलैया पनघट-पोखर
गुपचुप बात हुई
गीतों की लड़ियों को बुनते
आधी रात हुई
अधरों पे थे लाज के पहरे
चितवन बात करे

सतरँग चुनरी उड़-उड़ जाए
मनवा बाँध न पाए
अंबर छूती आशाओं के
सपने नैन समाए
भरी गगरिया छल-छल छलके
रुनझुन पाँव धरे
--
शशि पाधा

5 टिप्‍पणियां:

  1. विमल कुमार हेड़ा।1 नवंबर 2010 को 8:16 am बजे

    मन-अँगना में चंदन सुरभि
    केसर अंग झरे
    जूही-चंपा सखी-सहेली
    कुंकुम माँग भरे
    सजधज निकली सोन गुजरिया
    रूप-गंध बिखरे
    अति सुन्दर गीत के लिये शशि पाधा जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद।
    विमल कुमार हेड़ा।

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  2. सतरँग चुनरी उड़-उड़ जाए
    मनवा बाँध न पाए
    अंबर छूती आशाओं के
    सपने नैन समाए
    भरी गगरिया छल-छल छलके
    रुनझुन पाँव धरे
    --
    शशि पाधा जी हार्दिक बधाई

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  3. ताल-तलैया पनघट-पोखर
    गुपचुप बात हुई
    गीतों की लड़ियों को बुनते
    आधी रात हुई
    अधरों पे थे लाज के पहरे
    चितवन बात करे
    sunder shab rachna
    bahut bahut badhai
    saader
    rachana

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