मन-अँगना में चंदन सुरभि
केसर अंग झरे
जूही-चंपा सखी-सहेली
कुंकुम माँग भरे
सजधज निकली सोन गुजरिया
रूप-गंध बिखरे
ताल-तलैया पनघट-पोखर
गुपचुप बात हुई
गीतों की लड़ियों को बुनते
आधी रात हुई
अधरों पे थे लाज के पहरे
चितवन बात करे
सतरँग चुनरी उड़-उड़ जाए
मनवा बाँध न पाए
अंबर छूती आशाओं के
सपने नैन समाए
भरी गगरिया छल-छल छलके
रुनझुन पाँव धरे
--
शशि पाधा
मन-अँगना में चंदन सुरभि
जवाब देंहटाएंकेसर अंग झरे
जूही-चंपा सखी-सहेली
कुंकुम माँग भरे
सजधज निकली सोन गुजरिया
रूप-गंध बिखरे
अति सुन्दर गीत के लिये शशि पाधा जी को बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
मुझको यह रचना रुची.
जवाब देंहटाएंसतरँग चुनरी उड़-उड़ जाए
जवाब देंहटाएंमनवा बाँध न पाए
अंबर छूती आशाओं के
सपने नैन समाए
भरी गगरिया छल-छल छलके
रुनझुन पाँव धरे
--
शशि पाधा जी हार्दिक बधाई
ताल-तलैया पनघट-पोखर
जवाब देंहटाएंगुपचुप बात हुई
गीतों की लड़ियों को बुनते
आधी रात हुई
अधरों पे थे लाज के पहरे
चितवन बात करे
sunder shab rachna
bahut bahut badhai
saader
rachana
सुन्दर रचना, बधाई।
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