नया वर्ष अभिनंदन!
सहमी सी चिड़िया कुछ बोली
चिपकी आँख कली ने खोली
उखड़ी साँस हवा का आँचल
ओस भरा आँसू का काजलि
ठगी आरती किरन सुबह की
क्या पूजा क्या अर्चन
नदिया पटके पाँव गटर में
प्यास मछरिया तरसे
हरियाली उलझी काँटों में
गाल धुएँ में झुलसे
पूछ रहे हैं आगत का हल
कटे शीश धड़ उपवन
कौड़ी मोल आदमी कुर्सी
धर्म अर्थ विज्ञान
बेशर्मी की हदें तोड़कर
है नंगा इनसान
आज़ादी का अर्थ कटे है
न्याय नीति के बंधन
-- यतीन्द्र राही
सुंदर रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर छंद बद्ध कविता बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है किन्तु इसमें मुखड़ा नहीं है.
जवाब देंहटाएंआज़ादी काअर्थ कटे हैं
जवाब देंहटाएंन्याय नीति के बंधन।
सु्न्दर नव वर्ष अभिनंदन।
भाई यतीन्द्र राही जी| नववर्ष पर इतना सुंदर गीत प्रस्तुत करने के लिए आपका भी अभिनंदन|
जवाब देंहटाएंआदरणीय यतीन्द्र राही जी, आप·े गीत ·ी सुंदर बानगी पढऩे ·ो मिली। आप·ा ·ाफी नाम है, आप गीत·ारों ·ी अग्र पंक्ति ·े ·वि हैं। बेहतर रचना ·े लिए बधाई।
जवाब देंहटाएं-महेश सोनी
कौड़ी मोल आदमी कुर्सी
जवाब देंहटाएंधर्म अर्थ विज्ञान
बेशर्मी की हदें तोड़कर
है नंगा इनसान
आज़ादी का अर्थ कटे है
न्याय नीति के बंधन
badhai
saader
rachana
आकी रचनाओं ने हमेशा मुझे आकर्षित किया है...आप मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं....शब्द, भाव ऐसे झरते हैं जैसे झरना बह रहा हो...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लियें आपको बधाई...
सादर
गीता पंडित...