महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो
निज मन का
छायांकन कर लो
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?
खाली हाथ
न रो-पछताओ
कंकर से
शंकर बन जाओ
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो
देखोगे मन मलिन धुल रहा
-- आचार्य संजीव सलिल
bhut hi sundar rachna,,,,,,,
जवाब देंहटाएंखुद अपना
जवाब देंहटाएंमूल्यांकन कर लो
निज मन का
छायांकन कर लो
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?
बहुत सुन्दर!!!
सादर!
क्या रवानगी है गीत में, अपार अनुभव है आपके पास। अंतिम पंक्ति में मेरे विचार में "देखो मन मलिन धुल रहा" की जगह "देखो मन मालिन्य धुल रहा" होना चाहिए। आपको बधाई देते देते तो मेरे हाथ थक गए आचार्य जी, एक बार फिर से बधाई
जवाब देंहटाएंprashansa ke liye shabda kam pad jaate hai...........bahut sundar...........dil ko chhoo gaya
जवाब देंहटाएंbahut khoob sunder likha hai
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद. नया वर्ष मंगलमय हो.
जवाब देंहटाएंमहाकाल के महाग्रंथ का
जवाब देंहटाएंनया पृष्ठ फिर आज खुल रहा
खाली हाथ
न रो-पछताओ
कंकर से
शंकर बन जाओ
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो
देखोगे मन मलिन धुल रहा
बहुत सुंदर सलिलजी बधाई।
आचार्य जी प्रणाम| अविरल प्रवाह मय, ओजस्वी नवगीत है ये| शब्दों का संयोजन अद्वितीय है| सादर अभिनंदन|
जवाब देंहटाएंआचार्य जी यदि यों कहें कि इस गीत में नवगीत की सटीक परिभाषा समाहित है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बधाई।
जवाब देंहटाएंखुद अपना
मूल्यांकन कर लो
निज मन का
छायांकन कर लो
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?
आपका आभार शत-शत...
जवाब देंहटाएंमंदालस आकुल नवीन जो
पुरा-पुरातन वही खिल रहा...
खुद अपना
जवाब देंहटाएंमूल्यांकन कर लो
निज मन का
छायांकन कर लो
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?
अनुभव की कसौटी पर कसी एक सुन्दर रचना...
आभार आपका और नमन...
शुभ कामनाओं सहित
गीता पंडित...