24 दिसंबर 2010

११. काँपता सा वर्ष नूतन

काँपता सा वर्ष नूतन
आ रहा, पग डगमगाएँ
साल जाता है
पुराना सौंप कर घायल दुआएँ

आरती है अधमरी सी
रोज बम की चोट खाकर
मंदिरों के गर्भगृह में
छुप गए भगवान जाकर
काम ने निज पाश डाला
सब युवा बजरंगियों पर
साहसों को
जकड़ बैठीं वृद्ध मंगल कामनाएँ

है प्रगति बंदी विदेशी
बैंक के लॉकर में जाकर
रोज लूटें लाज घोटाले
गरीबी की यहाँ पर
न्याय सोया है समितियों
की सुनहली ओढ़ चादर
दमन के हैं
खेल निर्मम क्रांति हम कैसे जगाएँ

लपट लहराकर उठेगी
बंदिनी इस आग से जब
जलेंगे सब दनुज निर्मम
स्वर्ण लंका गलेगी तब
पर न जाने राम का वह
राज्य फिर से आएगा कब
जब कहेगा
समय आओ वर्ष नूतन मिल मनाएँ

--धर्मेन्द्र कुमार सिंह

7 टिप्‍पणियां:

  1. नव वर्ष नयी आशाओं के साथ ...सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. पर न जाने राम का वह
    राज्य फिर से आएगा कब
    जब कहेगा
    समय आओ वर्ष नूतन मिल मनाएँ

    बहुत सार्थक भावपूर्ण प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  3. सामायिक सन्दर्भों को समाहित करता सार्थक नव गीत...

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  4. लपट लहराकर उठेगी
    बंदिनी इस आग से जब
    जलेंगे सब दनुज निर्मम
    स्वर्ण लंका गलेगी तब
    पर न जाने राम का वह
    राज्य फिर से आएगा कब
    जब कहेगा
    समय आओ वर्ष नूतन मिल मनाएँ
    aap ki abhilasha jaroor puri hogi
    aap ne ghtnayon ko bahut khoob shbdon me piroya hai
    sunder geet
    badhai
    saader
    rachana

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  5. पढकर मन अनुभूतियों से भर गया...

    सुंदर भाव प्रधान नवगीत...


    आभार...
    बधाई आपको....


    शुभ कामनाएँ...
    गीता पंडित

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  6. रचना पसंद करने के लिए गुणीजनों को धन्यवाद

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