2 फ़रवरी 2011

६. सड़कों पर

सड़कों पर हो रही सभाएँ
राजा को-
धुन रही व्यथाएँ

प्रजा
कष्ट में चुप बैठी थी
शासक की किस्मत ऐंठी थी
पीड़ा जब सिर चढ़कर बोली
राजतंत्र की हुई ठिठोली
अखबारों-
में छपी कथाएँ

दुनिया भर
में आग लग गई
हर हिटलर की वाट लग गई
सहनशीलता थक कर टूटी
प्रजातंत्र की चिटकी बूटी
दुनिया को-
मथ रही हवाएँ

जाने कहाँ
समय ले जाए
बिगड़े कौन, कौन बन जाए
तिकड़म राजनीति की चलती
सड़कों पर बंदूक टहलती
शासक की-
नौकर सेनाएँ

--पूर्णिमा वर्मन

9 टिप्‍पणियां:

  1. एक बार फिर वही| इत्ते सुंदर नवगीत के रचनाकार का नाम ही पा नहीं चल रहा|
    शायद शीर्षक के लिहाज से सब से अधिक सार्थक नवगीत है ये| जिनका भी नवगीत है, उन्हें सादर नमन|

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  2. बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति..

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  3. नवगीतकार को बधाई....
    सुंदर नवगीत...

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  4. दुनिया भर
    में आग लग गई
    हर हिटलर की वाट लग गई
    सहनशीलता थक कर टूटी
    प्रजातंत्र की चिटकी बूटी
    दुनिया को-
    मथ रही हवाएँ
    bahut sunder
    badhai
    saader
    rachana

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  5. प्रजा
    कष्ट में चुप बैठी थी
    शासक की किस्मत ऐंठी थी
    पीड़ा जब सिर चढ़कर बोली
    राजतंत्र की हुई ठिठोली
    अखबारों-
    में छपी कथाएँआदरणीया पूर्णिमाजी
    सादर नमस्तें
    मुद्दतों बाद एक बार फिर आपके नवगीत ने इस पाठशाला को गौरवान्ति किया है । बेशक आपकी सगीत उपस्थिति सभी सुधी पाठकों के लिए प्रेरणादायक है। रचना बेशक गेय और स्मरणीय है हार्दिक बधाई।
    बहुत दिनों से सदस्यों के बीच खुले मंच पर संवाद नही हो रहा इससे मन में थोड़ा उचाट सा आने लगा है । आशा है आप संवाद कॉलम को पुनः बहाल करने का प्रयास करेंगी।

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  6. 'हिटलर की वाट लग गयी' नया प्रयोग है. बोलचाल की भाषा का नवगीत में प्रवेश स्वागत योग्य है. विवेक प्रियदर्शन ,इलाहबाद

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  7. आदरणीया पूर्णिमा जी
    तो आप हैं वो कमाल की गीतकारा
    नमन

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  8. पूर्णिमा जी!
    वन्दे मातरम.
    यह नवगीत मन को छू रहा है. 'हिटलर की वाट' अछूता प्रयोग... होस्नी मुबारक के हश्र की प्रतीति समय से पूर्व ही हो गयी लगती है. बधाई सटीक नवगीत के लिये.

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