नामी या बेनाम सड़क पर
होते सारे काम सड़क पर
जब देश लूटता राजा
कोई करे
कहाँ शिकायत,
संसद में बैठे दागी
एकजुट हो
करें हिमायत
बेहयाई नहीं टूटती,
रोज़ उठें तूफ़ान सड़क पर।
दूरदर्शनी बने हुए
इस दौर के
भोण्डे तुक्कड़,
सरस्वती के सब बेटे
हैं घूमते
बनकर फक्कड़
अपमान का गरल पी रहा
ग़ालिब का दीवान सड़क पर ।
खेत छिने, खलिहान लुटे
बिका घर भी
कंगाल हुए,
रोटी, कपड़ा, मन का चैन
लूटें बाज,
बदहाल हुए
फ़सलों पर बन रहे भवन
किसान लहूलुहान सड़क पर।
मैली चादर रिश्तों की
धुलती नहीं
सूखा पानी,
दम घुटकर विश्वास मरा
कसम-सूली
चढ़ी जवानी;
उम्र बीतने पर दिया है
-रामेश्वर कांबोज हिमांशु
सुंदर रचना, बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना है... समयोचित भी...
जवाब देंहटाएंअपमान का गरल पी रहा
जवाब देंहटाएंग़ालिब का दीवान सड़क पर ।
बहुत सटीक पर कटु सत्य..
aaj kee sthiti ko bayan karti bahut sateek kavita.charcha manch se aaj aapke is blog par aana hua aur ek bahut hi srijansheel kavi ki kavita se ru-b-ru hone ka avsar mila.
जवाब देंहटाएंmere blog kaushal ar bhi aapka hardik swagat hai..
फ़सलों पर बन रहे भवन
जवाब देंहटाएंकिसान लहूलुहान सड़क पर
mitti ka dard h ye...bahut khoob..
समसामयिक रचना के लियें आपको बधाई...
जवाब देंहटाएंआभार...
अपमान का गरल पी रहा
जवाब देंहटाएंग़ालिब का दीवान सड़क पर ।
बेमिसाल, काफ़ी प्रभावित कर गई ये कहन| बधाई हिमांशु जी|
दूरदर्शनी बने हुए
जवाब देंहटाएंइस दौर के
भोण्डे तुक्कड़,
सरस्वती के सब बेटे
हैं घूमते
बनकर फक्कड़
अपमान का गरल पी रहा
ग़ालिब का दीवान सड़क पर ।
bahut khoob
sachchi baten
sunder shbd snyojan
saader
rachana
समय की विसंगतियों को बखूबी उद्घाटित किया है... सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसरस्वती के बेटे
घूमते
बनकर फक्कड
सडक पे
अपमान का गर्ल
पी रहा
ग़ालिब का
दीवान
सडक पे