4 अप्रैल 2011

३. अखबारों में समाचार है


अखबारों में समाचार है
उल्लू बैठा डार-डार है

देश दिखाई देता दुखिया
लूट सके जो वो है सुखिया
लाचारी में शीश झुकाए
गुमसुम दिखे मुल्क का मुखिया

चुने हुए राजा-रानी से
प्रजातंत्र ही शर्मसार है

एक समय था गुल्ली-डंडा
खेल बना अब चोखा धंधा
रहो खेलते मनमानी से
जब तक गले पड़े न फंदा

राजनीति के खिलाड़ियों से
खेल स्वयं ही गया हार है

विकीलीक्स का नया खुलासा
सुनकर होती बड़ी निराशा
चौसर भले बिछी हो अपनी
पश्चिम फेंक रहा है पासा

शायद इसीलिए दिखती अब
लोकतंत्र की मुड़ी धार है

- ओमप्रकाश तिवारी
(मुंबई)

14 टिप्‍पणियां:

  1. भाई तिवारी जी बहुत ही सुंदर गीत लिखा है अपने आपको और नवगीत की पाठशाला को बधाई और नवसम्वत्सर की शुभकामनाएं |

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  2. अच्छा नवगीत है।

    चुने हुए राजा रानी से
    प्रजातंत्र ही शर्मसार है.....
    बहुत अच्छे ढँग से कहा है। एक दो जगह छन्द कसावट की माँग करता है। वधाई।

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  3. बहुत सुंदर कहा है.
    परन्तु देखिये जी, हताश मत होइए क्योंकि

    राजनीति के खिलाडियों को,
    अब पड़ रही भरकम मार है.

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  4. बहुत सटीक और सार्थक रचना..बहुत सुन्दर..नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!

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  5. सच्चाई दर्शाती सुन्दर अभिव्यक्ति
    बधाई
    रचना

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  6. यह गीत न केवल वर्तमान राजनीति को रेखांकित करता है, बल्कि खेल के प्रति बदली भावना को भी व्यक्त करता है. प्रस्तुतकर्ता एवं रचनाकार दोनों को बधाई एवं नवसंवत्सर की शुभकामनाएं

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  7. मुकेश जी,
    अच्छा लगा यह नवगीत
    प्रथम बन्द विशेष रूप से
    बधाई!

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  8. सुंदर नवगीत हेतु बधाई स्वीकार करें।

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  9. विकीलीक्स का नया खुलासा
    सुनकर होती बड़ी निराशा
    चौसर भले बिछी हो अपनी
    पश्चिम फेंक रहा है पासा

    सच, विकी के खुलासे क्या गुल खिला रहे हैं
    बिल्लियों की लड़ाई में बन्दर के मज़े हो रहे हैं

    भाव की नवीनता ने नवगीत को सार्थक कर दिया

    - वीनस केसरी

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  10. अति सुंदर .....
    एक अच्छे नवगीत के लियें .....आभार और बधाई...

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  11. चौसर भले बिछी हो अपनी
    पश्चिम फेंक रहा है पासा
    वाह क्या बात है... गजब हो रहा है इस कार्यशाला में तो एक से बढ़कर एक रचनाएँ प्रकट हो रही हैं... समाचारों के साथ रहने वाला व्यक्ति ही ऐसी रचना कर सकता है... मनभावन !

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  12. उल्लू बैठा डार डार है [हर शाख पे उल्लू बैठे हैं...]

    गुमसुम दिखे मुल्क का मुखिया - बेचारा लाचार दोपाया

    खेल स्वयं ही गया हार है......... यहाँ कुछ कथ्य व्यवधान का भास होता है, वैसे बहुतायत में हम सभी इस तरह के कथ्य बनाते तो हैं, पर बचना श्रेयस्कर होगा|

    लोकतंत्र की मुडी धार है...............ओह क्या करारा तंज़

    बधाई तिवारी जी, अच्छा नवगीत परस्तुत करने के लिए|
    आपका समस्या पूर्ति ब्लॉग पर स्वागत है:-
    http://samasyapoorti.blogspot.com/2011/04/blog-post.html

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  13. विकीलीक्स का नया खुलासा
    सुनकर होती बड़ी निराशा
    चौसर भले बिछी हो अपनी
    पश्चिम फेंक रहा है पासा

    शायद इसीलिए दिखती अब
    लोकतंत्र की मुड़ी धार है
    kya baat hai ati sunder
    badhai
    saader
    rachana

    जवाब देंहटाएं

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