कुदरत का यह लेखा
सपने में जो देखा
सुबह वही तो समाचार है
ताक-झाँक की थी पड़ोस में
’विकिलिक्स’ अखबार में छाये
टपकी लार बनी ईंधन तो
भट्टी खुद ही जलती जाये
लावा बहे दनादन
रीता घट रोता मन
छपी खबर का यही सार है
गाली मन में दबी पड़ी थी
गोली बन कर निकल पड़ी है
ख़्वाबों में जो लाश बिछाई
मौत सामने तनी खड़ी है
दिवास्वप्न तो दूर
अंतस् का दर्पण चूर
भीतर गहरा अंधकार है |
-हरिहर झा
(मेलबर्न, आस्ट्रेलिया)
sundar abivyakti
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिए हरिहर जी को बधाई
जवाब देंहटाएंलावा बहे दनादन
जवाब देंहटाएंरीता घट रोता मन
छपी खबर का यही सार है
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बहुत सुन्दर!
गाली मन में दबी पड़ी थी
जवाब देंहटाएंगोली बन कर निकल पड़ी है
ख़्वाबों में जो लाश बिछाई
मौत सामने तनी खड़ी है
दिवास्वप्न तो दूर
अंतस् का दर्पण चूर
भीतर गहरा अंधकार है |
बहुत सुन्दर!
बधाई
achchi rachna hai badhai
जवाब देंहटाएंदिवास्वप्न तो दूर
जवाब देंहटाएंअंतस् का दर्पण चूर
भीतर गहरा अंधकार है |
बहुत सुन्दर ...
बधाई हरिहर जी ..
bahut hi sunder abhivyakti hai......
जवाब देंहटाएंउत्तम प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंहरिहर झा की रचना इस पाठशाला में शायद पहली बार देख रही हूँ। एक नए और संभावनाशील रचनाकार दिखाई देते हैं..
जवाब देंहटाएंगाली मन में दबी पड़ी थी
गोली बन कर निकल पड़ी है
ख़्वाबों में जो लाश बिछाई
मौत सामने तनी खड़ी है
सशक्त पंक्तियाँ। बधाई
jay haatkesh
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