18 अप्रैल 2011

१८. सपने में जो देखा

कुदरत का यह लेखा
सपने में जो देखा
सुबह वही तो समाचार है

ताक-झाँक की थी पड़ोस में
’विकिलिक्स’ अखबार में छाये
टपकी लार बनी ईंधन तो
भट्टी खुद ही जलती जाये

लावा बहे दनादन
रीता घट रोता मन
छपी खबर का यही सार है

गाली मन में दबी पड़ी थी
गोली बन कर निकल पड़ी है
ख़्वाबों में जो लाश बिछाई
मौत सामने तनी खड़ी है

दिवास्वप्न तो दूर
अंतस् का दर्पण चूर
भीतर गहरा अंधकार है |

-हरिहर झा
(मेलबर्न, आस्ट्रेलिया)

10 टिप्‍पणियां:

  1. लावा बहे दनादन
    रीता घट रोता मन
    छपी खबर का यही सार है
    --
    बहुत सुन्दर!

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  2. गाली मन में दबी पड़ी थी
    गोली बन कर निकल पड़ी है
    ख़्वाबों में जो लाश बिछाई
    मौत सामने तनी खड़ी है

    दिवास्वप्न तो दूर
    अंतस् का दर्पण चूर
    भीतर गहरा अंधकार है |

    बहुत सुन्दर!
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. दिवास्वप्न तो दूर
    अंतस् का दर्पण चूर
    भीतर गहरा अंधकार है |


    बहुत सुन्दर ...
    बधाई हरिहर जी ..

    जवाब देंहटाएं
  4. हरिहर झा की रचना इस पाठशाला में शायद पहली बार देख रही हूँ। एक नए और संभावनाशील रचनाकार दिखाई देते हैं..
    गाली मन में दबी पड़ी थी
    गोली बन कर निकल पड़ी है
    ख़्वाबों में जो लाश बिछाई
    मौत सामने तनी खड़ी है
    सशक्त पंक्तियाँ। बधाई

    जवाब देंहटाएं

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