खोल देते पिटारे
अपठनीय होते
पठनीय हस्ताक्षर जैसे
ये समाचार।
दुनियाँ की दौड़-धूप में
उलझे-उलझे सुलझे
गाँव महानगरों में सिमटे
खोल देते पिटारे
मौन के स्वर हैं
गूँजते हस्ताक्षर जैसे
ये समाचार।
हैं सम्बन्धों के शत्रु-मित्र
शंकाओं के बीज, और
दौड़ते रहते अहर्निश
युगों से कितने समर्पित-
गगन से झाँकते
सूर्य के हस्ताक्षर जैसे
ये समाचार।
मुखौटे झूठे-सच्चे
चेहरा दिखाते, दर्पण हैं
दुनिया को मुट्ठी में रखते
बड़े विचित्र, बड़े विशाल -
पकड़ में न आते
अपरिचित हस्ताक्षर जैसे
ये समाचार।
- निर्मला जोशी
(भोपाल)
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति से परिपूर्ण कविता के लिए बधाई निर्मला जी.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना है मगर गीत जैसा प्रवाह नहीं है। निर्मला जी को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंनिर्मला जी! अच्छी रचना हेतु बधाई लें.
जवाब देंहटाएंनिर्मला जोशी जी का गीत पाठशाला में बहुत दिनों के बाद देखने को मिला। कुछ नई प्रयोगवादी शैली के साथ। अच्छा लगा। स्वागत...
जवाब देंहटाएंमुखौटे झूठे-सच्चे
जवाब देंहटाएंचेहरा दिखाते, दर्पण हैं
दुनिया को मुट्ठी में रखते
बड़े विचित्र, बड़े विशाल -
पकड़ में न आते
अपरिचित हस्ताक्षर जैसे
ये समाचार।
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंनवगीत पाठशाला १५
जवाब देंहटाएंनवगीत पाठशाला १५ में मेरी रचना को सुरुचि संपन्न सुधी पाठकों ने अपने अभिमतो द्वारा जो संबल दिया उसके लिए हार्दिक
आभार ! और आभार है अभिव्यक्ति अनुभूति परिवार का जो मुझे निरन्तर नई दिशा की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता रहता है !
मेरा विश्वास लिखते रहने में है निर्णायक तो मेरे सुधी पाठक और मार्ग दर्शक हैं!
शुभ कामनाओं साहित--
निर्मला जोशी