वासंती समझौते
दस्तख़त पलाश के।
गंधों के दावों का
एक बाग फूला,
आँखों ने कलियों पर
डाल दिया झूला,
कहाँ रहे कोयल के
आज मन हुलास के।
आसमान छूने को
परचम लहराए,
कौवों ने सुबह-सुबह
काँव गीत गाए,
उगल रही तोती भी
शब्द कुछ भड़ास के।
तेज़ हुई आँधी में
डोलते बबूल,
डाल की गिलहरी भी
राह गई भूल,
टिड्डी दल पाले है
ख़्वाब कुछ विकास के।
-ब्रजनाथ श्रीवास्तव
दस्तख़त पलाश के।
गंधों के दावों का
एक बाग फूला,
आँखों ने कलियों पर
डाल दिया झूला,
कहाँ रहे कोयल के
आज मन हुलास के।
आसमान छूने को
परचम लहराए,
कौवों ने सुबह-सुबह
काँव गीत गाए,
उगल रही तोती भी
शब्द कुछ भड़ास के।
तेज़ हुई आँधी में
डोलते बबूल,
डाल की गिलहरी भी
राह गई भूल,
टिड्डी दल पाले है
ख़्वाब कुछ विकास के।
-ब्रजनाथ श्रीवास्तव
तेज़ हुई आँधी में
जवाब देंहटाएंडोलते बबूल,
डाल की गिलहरी भी
राह गई भूल,
टिड्डी दल पाले है
ख़्वाब कुछ विकास के।
उत्तम...अति उत्तम
ताज़ा बिम्बों से सजा नवगीत बहुत सुंदर लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत है, ब्रजनाथ जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.बधाई
जवाब देंहटाएंकथ्य की दृष्टि से बहुत सुन्दर नवगीत है --
जवाब देंहटाएं" गंधों के दावों का
एक बाग फूला,
आँखों ने कलियों पर
डाल दिया झूला "
आपके और नवगीतों की प्रतीक्षा रहेगी।
आँखों ने कलियों पर
जवाब देंहटाएंडाल दिया झूला,
--
उगल रही तोती भी
शब्द कुछ भड़ास के।
--
बहुत सुंदर बिंबों का प्रयोग किया गया है!
बहुत सुंदर बिम्ब नए सजीले बिम्ब
जवाब देंहटाएंनवगीत बनगया प्रभावी
जो पलाश से सजे गीत
सादर
रचना