8 जून 2011

७. दस्तखत पलाश के


वासंती समझौते
दस्तख़त पलाश के।

गंधों के दावों का
एक बाग फूला,
आँखों ने कलियों पर
डाल दिया झूला,
कहाँ रहे कोयल के
आज मन हुलास के।

आसमान छूने को
परचम लहराए,
कौवों ने सुबह-सुबह
काँव गीत गाए,
उगल रही तोती भी
शब्द कुछ भड़ास के।

तेज़ हुई आँधी में
डोलते बबूल,
डाल की गिलहरी भी
राह गई भूल,
टिड्डी दल पाले है
ख़्वाब कुछ विकास के।

-ब्रजनाथ श्रीवास्तव

7 टिप्‍पणियां:

  1. तेज़ हुई आँधी में
    डोलते बबूल,
    डाल की गिलहरी भी
    राह गई भूल,
    टिड्डी दल पाले है
    ख़्वाब कुछ विकास के।
    उत्तम...अति उत्तम

    जवाब देंहटाएं
  2. ताज़ा बिम्बों से सजा नवगीत बहुत सुंदर लगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर नवगीत है, ब्रजनाथ जी को बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. कथ्य की दृष्टि से बहुत सुन्दर नवगीत है --
    " गंधों के दावों का
    एक बाग फूला,
    आँखों ने कलियों पर
    डाल दिया झूला "

    आपके और नवगीतों की प्रतीक्षा रहेगी।

    जवाब देंहटाएं
  5. आँखों ने कलियों पर
    डाल दिया झूला,
    --
    उगल रही तोती भी
    शब्द कुछ भड़ास के।
    --
    बहुत सुंदर बिंबों का प्रयोग किया गया है!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर बिम्ब नए सजीले बिम्ब
    नवगीत बनगया प्रभावी
    जो पलाश से सजे गीत
    सादर
    रचना

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।