हँसी तुम्हारी चंदा जैसी,
चितवन फूल पलाश
बातें झरना यथा ओसकण
तारों भरा उजास
गुन-गुन
भौंरों जैसे गाना,
और शरारत से मुस्काना
हौले-से,
ही हमें चिढ़ाना
वादा कर फिर हाथ न आना
चमकाती लेकिन फिर भी हो
एक किरन की आस
जो भी
दिन है साथ बिताए,
जस फूलों की घाटी घर
नोंक-झोंक
विस्मृति-स्मृति में,
एक क्षीरमय सुन्दर सर
मिलना तुम से तीरथ जैसा,
भूला - बिसरा रास
- क्षेत्रपाल शर्मा
बहुत सुंदर रचना है। क्षेत्रपाल जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंपलाश के बहाने कुछ अच्छे गोतों का सृजन हो गया!
जवाब देंहटाएंएक अच्छा गीत है, वधाई ! थौड़ा सा कथ्य में नयापन लाकर इसे नवगीत भी बनाया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंमुझको यह रचना रुची.
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