20 जून 2011

१८. बहुत कुछ हम पा गए

भीड़ में गुम हो गई
अपनी तलाशों से
बहुत कुछ हम पा गए
मिल कर पलाशों से

सुर्ख धधका हुआ चेहरा
रास आया फिर
जूझने का वही जज्बा
पास आया फिर
सध गए हम संधि से
जुड कर समासों से
बहुत कुछ हम पा गए ...

अनकहा था जो कि
वो भी सामने आया
एक साया बाँह
अपनी थामने आया
बात खुल कर हुई
अपने अनुत्प्रासों से
बहुत कुछ हम पा गए ...

सुबह आई और
अपनी हो गई फिर से
लहर सी कोई उठी
तालाब में फिर से
खिल गई ताज़ा हवा
गहरी उसासों से
बहुत कुछ हम पा गए...

--यश मालवीय

3 टिप्‍पणियां:

  1. यश मालवीय जी का बहुत ही सुंदर नवगीत है। इससे हम जैसे विद्यार्थियों को सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। इसे प्रस्तुत करने के लिए नवगीत की पाठशाला को बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. नवगीत सम्राट यश मालवीय जी का यह नवगीत सध गए हम संधि से
    जुड कर समासों से
    बहुत कुछ हम पा गए ...
    जैसी अभिव्क्तियों के लिए याद रखे जाने योग्य है. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. अनकहा था जो कि
    वो भी सामने आया
    एक साया बाँह
    अपनी थामने आया
    बात खुल कर हुई
    अपने अनुत्प्रासों से
    बहुत कुछ हम पा गए ..
    अति उत्तम गीत पढने वाला भावनाओं में बहता चला जाये ऐसा गीत अहि
    सादर
    रचना

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।