5 सितंबर 2011

तीन रचनाएँ - दिशा निर्देश के लिये

अंत में नवप्रयत्नशील रचनाकारों की रचनाएँ। यदि विद्वान सदस्य यह मार्ग दर्शन कर सकें कि इन्हें नवगीत किस प्रकार बनाया जा सकता है तो सभी को कुछ न कुछ सीखने का अवसर मिलेगा। -
१. यह शहर - आकुल
२. झुंड में पंछी अकेला- उत्तम द्विवेदी

1 टिप्पणी:

  1. पुरुषोत्तम व्यास की इस कविता में सीधी सीधी बात कही गई है, कुछ प्रतीकों और विम्बों का भी सहयोग ले लिया जाये तो नवगीत और धारदार हो जाता है। अपने इन्हीं विचारों को कुछ इस तरह भी नवगीत में बाँध सकते हैं -----

    सुबह शाम तनहाई पसरी
    किससे बात करें ।

    नफरत का बाजार गरम है
    प्यार कहीं दुबका
    जिसको मौका मिला, उसी ने
    अवसर को लपका

    जंगल नहीं, महाजंगल ये
    छिपकर घात करें ।

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