हरियाली ने हर घाव पर
लगा दिया मरहम
पावस बीता, फिर से लौटा
उत्सव का मौसम
हम जीव की भाग दौड़ में
बुरी तरह थक जाते
फिर मन में उमंग भर देते
ये उत्सव जब आते
छुवन हवा की बिसरा देती
दुनिया के सब गम
दुर्गा पूजा और दशहरा
फिर होगी दीवाली
मेला देखेंगी पापा संग
आँखें भोली भाली
बूढ़ों से आगे ही होंगे
बच्चे चार कदम
माथे पर चिन्ता की रेखा
डाल गई महँगाई
आखिर हमको भी जब कड़वी
लगने लगी मिठाई
तब गरीब पर क्या गुजरेगी
सोच रहे हैं हम
-रवि शंकर मिश्र 'रवि'
(प्रतापगढ़)
अच्छा गीत. नव गीत का टटकापन नहीं मिला..
जवाब देंहटाएंरवि का पाया साथ अगर
तो मिट जायेगा तम.
लगा दाल में छौंक
आ गया उत्सव का मौसम.
गीत सुंदर है, रवि जी को बधाई
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