6 अक्तूबर 2011

१०. दीप जला दो आँगन–आँगन

जगमग
नव प्रकाश हो पावन
दीप जला दो‚ आँगन–आँगन

ये प्रकाश
के पंख रुपहले
दूर क्षितिज पर जाकर पहले
कर दें अपना यह विज्ञापन

धुँधले
पंथ‚ अँधेरी राहें
पकड़–पकड़ ज्योतिर्मय बाहें
स्वर्ग बना दें‚ जगत अपावन

अंधकार
का नष्ट गर्व है
दीप जले हैं‚ ज्योतिपर्व है
उजला–उजला दामन–दामन

मन से
मन का दीप जलाएँ
आजीवन जन–जीवन गाएँ
द्वेषभाव का किए विसर्जन

—राममूर्ति सिंह 'अधीर

2 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा गीत.
    ''लोकतत्त्व का समावेश'' नवगीत की पहचान है. इसकी उपस्थिति न्यून प्रतीत हुई.

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  2. अच्छे गीत के लिए राममूर्ति जी को बधाई

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