10 अक्तूबर 2011

१४. उत्सव का मौसम

आया उत्सव का मौसम

हर्षाई हर साँझ, दुपहरी
ढोल, नगाड़े, ताशे बाजे
घर, आंगन, द्वारे, गलियारे
मन रंगीले झालर साजे
त्यौहारी उजियारे ने यों
'हरे' हृदय के 'तम'

पर्व उजासे, पावस 'बोली'
महल-मड़ैय्या, हंसी-ठिठोली
'बंदरवार' बंधे हैं 'नभ' तक
घरती माढ़ रही 'रंगोली'
खुशियों की बाँहों में हौले
मुस्काते हैं 'गम'

ऋतुओं के पग खिले 'महावर'
'पल' फूलों की डोली जैसे
पाहुन की अगुवाई करते
'दिन' दीवाली, होली जैसे
घुंघट में ज्यों 'दुल्हन' हुलसे
आँखें हैं पर, नम

-नियति वर्मा
(इंदौर)

4 टिप्‍पणियां:

  1. पर्व उजासे, पावस 'बोली'
    महल-मड़ैय्या, हंसी-ठिठोली
    'बंदरवार' बंधे हैं 'नभ' तक
    घरती माढ़ रही 'रंगोली'
    खुशियों की बाँहों में हौले
    मुस्काते हैं 'गम'

    नियति जी !
    मन तक पहुँचता शब्द चित्र... आपको बधाई..

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  2. बहुत सुंदर नवगीत है नियति जी का, बहुत बहुत बधाई उन्हें

    जवाब देंहटाएं

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