14 अक्तूबर 2011

१७. ज्योतिर्मय आई दीवाली

ज्योतिर्मय आई दीवाली
पुलकित है हिय में हर आली
दीपक थाल लिये

श्री पूजन संग गणपति वंदन
मधुर गीत स्वर का स्पंदन
शोभित है हर ओर गगन के
घोर अमावस माथे चंदन
नीरज नाल लिये

वन्दनवार पटाखे लड़ियाँ
बचपन झूमे ले फुलझड़ियाँ
कम्पित गात धरे पग धीरे
कुसुमित नवल वधू मन कलियाँ
पुष्पित माल लिये

स्नेह अकिंचन अंतस तमसित
काव्य प्रकाश भुवन में उजसित
वागेश्वरि वीणा झंकृत कर
राग विहाग हृदय हो विकसित
माँ उर माल लिये

-श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
(कोलकाता)

13 टिप्‍पणियां:

  1. shobhit hai har or gagan ke.ghor amavas mathe chandan. bahut sundar bhav hai.aasha bi aashanka bi.shivendra.k.mishra

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  2. बहुत सुंदर..
    अब तो आप गीतकार भी हो गये

    बधाई...

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  3. वागेश्वरि वीणा झंकृत कर
    राग विहाग हृदय हो विकसित
    माँ उर माल लिये!
    बहुत सुंदर.
    हार्दिक बधाई.

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  4. अनूप जी ... ! प्रोत्साहन के लिये हार्दिक आभार। कृपया स्नेह बनाये रखें

    शिवेन्द्र जी देवनागरी में टंकण बहुत ही सरल है। मैं सहायता के लिये skant124@gmail.com पर उपलब्ध हूं। गीत पर टिप्पणी के लिये आपका धन्यवाद

    गीता जी वर्षों पूर्व गीत से ही लिखना (पारंपरिक छ्न्द ) आरम्भ किया था। किन्तु नवगीतकार संयोगवश आदरणीय पूर्णिमा जी के प्रोत्साहन से नवगीत की पाठशाला ने गढ़ डाला। गीत पर टिप्पणी के लिये आभार।

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  5. 'बचपन झूमे ले फुलझडियां ' .अति सुंदर... काश ऐसा ही हो जाए ..आपको बधाई श्रीकांत जी

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  6. श्रीकांत जी को इस आशामय और प्रवाहमय गीत के लिए बधाई

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  7. आदरणीय शारदा मोंगा जी प्रोत्साहन एवं स्नेहाशीष के लिये आपका आभार - प्रणाम

    संध्या सिंह जी सचमुच काश ऐसा होता..!। फिर भी रचनाधर्मिता रचनाकार को कुछ पल के लिये ही सही उसकी अनुभूति अवश्य ही करा देती है। दीपावली के लिये अग्रिम शुभकामना।

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  8. वन्दनवार पटाखे लड़ियाँ
    बचपन झूमे ले फुलझड़ियाँ
    कम्पित गात धरे पग धीरे
    कुसुमित नवल वधू मन कलियाँ
    पुष्पित माल लियेबहुत सुंदर.
    सुंदर गीत
    \बधाई
    rachana

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  9. मिश्र जी आपने बहुत ही सुन्दर गीत लिखा है...आपको हार्दिक बधाई ...

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  10. डा० प्रीति गुप्ता जी, रचना जी और धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ जी आदरणीय पूर्णिमा जी के प्रोत्साहन से आपूर्त इस नवगीत के प्रति आपके इन शब्दों के लिये आपका हार्दिक आभार। शुभ दीपोत्सव।

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  11. 'नीरज नाल लिये' यह अभिव्यक्ति मन मोह गयी...
    सकल गीत को पढ़कर निराला की 'वर दे' और 'ज्योति कलश छलके' जैसी रचनाएँ याद हो आयीं.
    बधाई.

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