21 अक्तूबर 2011

२४. उत्सव गीत

कल था मौसम बौछारों का
आज तीज और त्योहारों का
रंग रोगन वंदनवारों का
घर घर जा कर बंजारा नि‍त
इक नवगीत सुनाए।

कल बि‍जुरी ने पावस गीत
दीपक राग आज हर दीप
भ्रमर गीत गाते मन मीत
सात सुरों में अरु बयार ने
उत्ससव गीत सुनाए।

शरत् चाँदनी छि‍टकी नभ से
कमल कली भी चटकी फट् से
बजी पैंझनी कौंधनी कटि‍ से
चमक चाँदनी नि‍कली बन ठन
घर घर दीप जलाए।

मदन दीप दीपाधारों से
रंगोली घर के द्वारों से
भरे हुए पथ अंगारों से
क्षि‍ति‍ज परे तक देव दि‍वाली
अमि‍त प्रदीप लुटाये।

दि‍न मधुबन मधुयामि‍नी रातें
देवोत्था‍न सजी बारातें
जि‍तने मुँह और उतनी बातें
कूल कलि‍न्दी कदम्ब तले कहीं
कान्हा‍ बंसी बजाये।

-आकुल, कोटा

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