तिल के लड्डू माँग रही है
बिटिया रिक्शे वाले की|
कई दिनों की बीमारी ने
रिक्शा नहीं चलाया
इस कारण से मुट्ठी भर भी
दाना घर ना आया
किसी दियाथाने, सिरहाने
सिक्के कुछ मिल जाएँ
पूरी हो लें इससे शायद
बिटिया की इच्छाएं
हुई तलाशी चाचाजी के
बीड़ी वाले आले की
तिल के लड्डू मांग रही है
बिटिया रिक्शे वाले की|
बड़ी भोर से शाम ढले तक
सूरज लड़ा बेचारा
कोहरे का आतंक, दुबककर
सभी मोर्चे हारा
रोज पतंगो सी कट जाती
धरणी की इच्छायें
आसमान की क्रूर कथायें
किस किस को बतलायें
झोपड़ियों के ठीक सामने
बिल्डिंग पचपन माले की
तिल के लड्डू मांग रही है
बिटिया रिक्शे वाले की|
एक तरफ छप्पर छज्जे
छककर पकवान उड़ाते
बड़ी हवेली के जर्रे तक
खुरमा बतियां खाते
और इस तरफ खड़ी बेचारी
मजबूरी लाचारी
केंप लगाकर भाग्य बेचते
रोटी के व्यापारी
तन और मन की सौदे बाजी
कीमत लगी निवाले की
तिल के लड्डू मांग रही रही है
बिटिया रिक्शे वाले की|
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
बिटिया रिक्शे वाले की|
कई दिनों की बीमारी ने
रिक्शा नहीं चलाया
इस कारण से मुट्ठी भर भी
दाना घर ना आया
किसी दियाथाने, सिरहाने
सिक्के कुछ मिल जाएँ
पूरी हो लें इससे शायद
बिटिया की इच्छाएं
हुई तलाशी चाचाजी के
बीड़ी वाले आले की
तिल के लड्डू मांग रही है
बिटिया रिक्शे वाले की|
बड़ी भोर से शाम ढले तक
सूरज लड़ा बेचारा
कोहरे का आतंक, दुबककर
सभी मोर्चे हारा
रोज पतंगो सी कट जाती
धरणी की इच्छायें
आसमान की क्रूर कथायें
किस किस को बतलायें
झोपड़ियों के ठीक सामने
बिल्डिंग पचपन माले की
तिल के लड्डू मांग रही है
बिटिया रिक्शे वाले की|
एक तरफ छप्पर छज्जे
छककर पकवान उड़ाते
बड़ी हवेली के जर्रे तक
खुरमा बतियां खाते
और इस तरफ खड़ी बेचारी
मजबूरी लाचारी
केंप लगाकर भाग्य बेचते
रोटी के व्यापारी
तन और मन की सौदे बाजी
कीमत लगी निवाले की
तिल के लड्डू मांग रही रही है
बिटिया रिक्शे वाले की|
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
भाई प्रभुदयाल की इस श्रेष्ठ नवगीत प्रस्तुति से इस बार की नवगीत पाठशाला का आगाज़ एक शुभ संकेत है| फेसबुक पर कुछ इसी सन्दर्भ की प्रस्तुतियां देखने में आईं हैं| सम्भवतः वे भी बाद में इस पाठशाला में शामिल होंगी| भाई प्रभुदयाल को एवं 'नवगीत पाठशाला' को मेरा हार्दिक साधुवाद इस वर्तमान सन्दर्भों से बतियाती नवगीत-प्रस्तुति हेतु!
जवाब देंहटाएंकुमार रवीन्द्रजी निश्चित ही आपकी टिप्पणियां उत्साहित करती हैं|
हटाएंसमय को सूक्ष्मता से परखने की आपकी दिव्य दृष्टि को प्रणाम
प्रभुदयाल
निःशब्द हूँ प्रभुदयाल जी के इस नवगीत पर। बहुत ही सुंदर नवगीत है, उन्हें हार्दिक बधाई इस नवगीत के लिए।
जवाब देंहटाएंकार्यशाला 20 की धमाकेदार शुरूआत। अमीरी और गरीबी में अन्तर को बहुत सुन्दर शब्दों में ढ़ाला। बहुत ही मार्मिक नवगीत।
हटाएंझोपड़ियों के ठीक सामने
बिल्डिंग पचपन माले की
एवं
रोटी के व्यापारी
तन और मन की सौदे बाजी
कीमत लगी निवाले की
लाइने दिल की गहराईयों को छू जाती है एवं सोचने पर मजबूर करती है। नवगीत की पाठशाला एवं प्रभुदयाल जी को बहुत बहुत बधाई एवं साधुवाद।
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
बहुत सुन्दर !
हटाएंसाहित्य में विशेषत: नवगीत की पाठशाला में आपका रुझान प्रणम्य है|आप लगभग सभी नवगीतकारों का प्रोत्साहन करते हैं आप निश्चित ही धन्यवाद के पात्र हैं|आपकी रचनायें तो अच्छी होती ही हैं|
हटाएंप्रभुदयाल
भाईजी, क्या खूब. बडी ही खूबसूरत रचना बनी है. मॆरी ओर से बधाइयां स्वीकारें. गोवर्धन यादव छिन्दवाडा म.प्र.
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों को जिन्होंने इस गीत को प्रशंसा देकर मेरा उत्साह वर्धन किया को धन्यवाद प्रभुदयाल
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत लॆखक एवं नवगीत की पाथशाला को बधाई
जवाब देंहटाएंपी. एन. श्रीवास्तव सिविल लाइंस सागर
बहुत सुंदर.सटीक चित्रण.
हटाएंशारदा मोगाजी बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंप्रभुदयाल
वाह...वाह...
जवाब देंहटाएंप्रभुदयाल जी के इस नवगीत में 'रोज पतंगो सी कट जाती
धरणी की इच्छायें, झोपड़ियों के ठीक सामने
बिल्डिंग पचपन माले की, तन और मन की सौदे बाजी
कीमत लगी निवाले की, कई दिनों की बीमारी ने
रिक्शा नहीं चलाया' आदि शब्द चित्र मन को छूते हैं. सामाजिक वैषम्य और पारिस्थितिक विवशता का सटीक चित्रण गीत को नव आयाम देता है.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
संजीव वर्मा जी को बहुत बहुत धन्यवाद हौसला अफजाई के लिये
हटाएंप्रभुदयाल
वाह...वाह...
जवाब देंहटाएंप्रभुदयाल जी के इस नवगीत में 'रोज पतंगो सी कट जाती
धरणी की इच्छायें, झोपड़ियों के ठीक सामने
बिल्डिंग पचपन माले की, तन और मन की सौदे बाजी
कीमत लगी निवाले की, कई दिनों की बीमारी ने
रिक्शा नहीं चलाया' आदि शब्द चित्र मन को छूते हैं. सामाजिक वैषम्य और पारिस्थितिक विवशता का सटीक चित्रण गीत को नव आयाम देता है.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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http://hindihindi.in
वाह...वाह...
जवाब देंहटाएंप्रभुदयाल जी के इस नवगीत में 'रोज पतंगो सी कट जाती
धरणी की इच्छायें, झोपड़ियों के ठीक सामने
बिल्डिंग पचपन माले की, तन और मन की सौदे बाजी
कीमत लगी निवाले की, कई दिनों की बीमारी ने
रिक्शा नहीं चलाया' आदि शब्द चित्र मन को छूते हैं. सामाजिक वैषम्य और पारिस्थितिक विवशता का सटीक चित्रण गीत को नव आयाम देता है.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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