लहराईं नभ में उमंगें उमंगें
पतंगें पतंगें पतंगें पतंगें !
गागर की ठीकर से
चमकाए एड़ी
चली आई छत पे
किरन दौड़ी दौड़ी
सलोनी-सी आँखों में
सपने ही सपने
करे क्या हुई है
उमर ही निगोड़ी
हँसें नख से शिख तक तरंगें तरंगें !
न अंबुआ में अब तक
उगी बौर-कोंपल
न टेसू के मन में
कहीं कोई हलचल
खिली तो खिली बस
इसी तन में लाली
हिली तो छमक-छम
इसी पाँव पायल
जिया गीत गूँजें हिया में मृदंगें !
--अश्विनी कुमार विष्णु
अश्विनी जी को इस सुंदर नवगीत के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंगागर की ठीकर से
जवाब देंहटाएंचमकाए एड़ी
चली आई छत पे
किरन दौड़ी दौड़ी
सलोनी-सी आँखों में
सपने ही सपने
करे क्या हुई है
उमर ही निगोड़ी
हँसें नख से शिख तक तरंगें तरंगें !
वाह वाह ..बहुत ही खूबसूरत गीत. जलतरंग के सुर सा.
खिली तो खिली बस
जवाब देंहटाएंइसी तन में लाली
हिली तो छमक-छम
इसी पाँव पायल
जिया गीत गूँजें हिया में मृदंगें !
बहुत सुन्दर गीत बिलकुल खनकता हुआ सा .....अश्विनी जी सच कहूँ तो इस गीत को पढते पढ़ते लगा .....कि शब्द खुद ही साज़ कि तरह से बज रहे है.... बहुत ही सुन्दर गीत
सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंअवनीश तिवारी
मुम्बई
बहुत सुंदर रचना बधाई प्रभुदयाल श्रीवास्तव
जवाब देंहटाएंउमंगों से सराबोर इस नवगीत ने मन को झूमने पर मजबूर कर दिया. बहुत-बहुत बधाई. गीत का हर शब्द खनकता सा लगता है.
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