मकर राषि के सूर्य आज तो
लगते हैं लडडू गुड़-तिल के
इन्द्रधनुष के रंग बिखेरे
नभ में ढेरों-ढेर पतंगें
फिर मन में अंगड़ाई लेतीं
जागी ढेरों-ढेर उमंगें
उधर कहीं वीणाएं बजती
इधर बजे इकतारे दिल के
मतवाला-सा पवन घूमता
नाच रही खेतों में फसलें
जी करता है हम भी नाचें
गाएँ जोर-जोर से हँस लें
धीरे-धीरे उतर रहे हैं
ओढ़े हुए मौन के छिलके
- शशिकांत गीते
वाह!!बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआदरणीय कल्पना जी, धन्यवाद.
हटाएंमतवाला-सा पवन घूमता, नाच रही खेतों में फसलें
जवाब देंहटाएंजी करता है हम भी नाचें,गाएँ जोर-जोर से हँस लें
धीरे-धीरे उतर रहे हैं,ओढ़े हुए मौन के छिलके
सुन्दर पंक्तियाँ शशिकांत जी को बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेड़ा।
धन्यवाद, हेडा जी.
हटाएंसुंदर.
जवाब देंहटाएंमकर राषि के सूर्य आज तो
जवाब देंहटाएंलगते हैं लडडू गुड़-तिल के
सूर्य की ऐसी अनूठी उपमा पहली बार पढ़ी...
अच्छी रचना.
धन्यवाद, आदरणीय शारदा मोंगा जी और आचार्य श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी.
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