कुहरे को ओढ़ने
बिछाने के दिन आए
दिन आए
धूप धूप गाने के
शाखों नने झूमकर बुने
किरणों के गीत कुनकुने
देहों को
बाँसुरी बनाने के
दिन आए
धूप धूप गाने के
छुअनें सब तितलियाँ हुईं
खुल के हँसती छुई मुई
सुधियों की
औस में नहाने के
दिन आए
धूप धूप गाने के
हरीश निगम
-सतना से
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआज सरस्वती पूजा निराला जयन्ती
और नज़ीर अकबारबादी का भी जन्मदिवस है।
बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर नवगीत है, हरीश जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंहरीश जी, धुप के इस कुनकुने अहसास से परिचय करने के लिए धन्यवाद. बहुत सुन्दर गीत.
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